Wednesday, June 29, 2011

शराबियों से त्रस्त सांसद


एसपी से देशमुख ने की मुलाकात
शराबियों से त्रस्त सांसद
रोगायो के मजदूरों में शराब माफिया की घुसपैठ पर जताई चिंता
सिवनी। शराब माफियाओं के लिए रोजगार गारंटी योजना वरदान साबित हो रही है। इन योजनाओं में कार्य करने वाले मजदूरों में इनकी घुसपैठ बढ़ गई है। यही कारण है जिले के गांव-गांव में शराब ठेकेदारों द्वारा अवैध रूप से शराब बेचने का गोरखधंधा जमकर फल फूल रहा है। इस आशय के आरोप सांसद केडी देशमुख ने पुलिस अधीक्षक राकेश जैन से भेंट कर आरोपित किया है।
एसपी से देशमुख ने की मुलाकात
शराबियों से त्रस्त सांसद
रोगायो के मजदूरों में शराब माफिया की घुसपैठ पर जताई चिंता
 
सिवनी। शराब माफियाओं के लिए रोजगार गारंटी योजना वरदान साबित हो रही है। इन योजनाओं में कार्य करने वाले मजदूरों में इनकी घुसपैठ बढ़ गई है। यही कारण है जिले के गांव-गांव में शराब ठेकेदारों द्वारा अवैध रूप से शराब बेचने का गोरखधंधा जमकर फल फूल रहा है। इस आशय के आरोप सांसद केडी देशमुख ने पुलिस अधीक्षक राकेश जैन से भेंट कर आरोपित किया है। 
                                                            एसपी से देशमुख ने की मुलाकात

शराबियों से त्रस्त सांसद

रोगायो के मजदूरों में शराब माफिया की घुसपैठ पर जताई चिंता

्‌ीटा्रसिवनी-बालाघाट क्षेत्र के विधायक केडी देशमुखने सोमवार को सिवनी के साप्ताहिक प्रवास के दौरान मीडिया से बात करते हुए कहा है कि अवैध शराबखोरी का व्यापार स्वर्णिम मप्र के निर्माण में बाधक बन रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार युवकों के माध्यम से शराब के ठेकेदारों ने जिस तरह अपना कारोबार गांव-गांव में फैलाया है वह इस जिले की प्रगति और युवकों के लिए खतरा साबित हो रहा है।
गांव की छोटी-छोटी किराना दुकान और पान ठेलों में शाम होते ही जाम छलकने लगते हैं और अंडे बिकने लगते हैं। ग्रामीण विकास की जनकल्याणकारी योजनाओं में मजदूरी की बढ़त के बावजूद उनमें खुशहाली की जगह शराबखोरी ने स्थान ले लिया है। इस सामाजिक बुराई का शौक विशेषकर युवकों में धीरे-धीरे लत के रूप में बदल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची शराब का चलन भी इसी के चलते बढ़ गया है। कच्ची शराब के निर्माण में यूरिया के प्रयोग पर चिंता जताते हुए शराब निर्माताओं द्वारा शराब में तेज नशा की नीयत से यह यूरिया स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रही है। आबकारी विभाग पर बेलगाम होने का आरोप लगाते हुए सांसद श्री देशमुख ने कहा है कि आबकारी विभाग की सांठगांठ के कारण ही यह सामाजिक बुराई इस जिले में बढ़ गई है।

गांव-गांव किराना और पान दुकानों में बढ़ी शराब की बिक्री के कारण ढाबों और होटलों में भी शराबखोरी आम हो गई है। शराब बिक्री की इस कुव्यवस्था को समाजहित में प्रतिकूल बताते हुए सांसद ने पुलिस अधीक्षक राकेश जैन से इस पर युक्तियुक्त अंकुश लगाने की पहल करने का मशवरा दिया है।
मिला आश्वासन
स्वर्णिम मप्र की जगह शराबी प्रदेश बनने की आशंका से दुखी श्री देशमुख को पुलिस अधीक्षक ने शराबखोरी के विरूद्घ सार्थक कार्रवाई का आश्वासन भी दिया है। ङ"ख११ऋ
जिले में जहां कहीं भी अवैध और नियम विरूद्घ शराब की बिक्री की सूचना मिलती है, कम स्टाफ के बावजूद ठोस कार्रवाई की जाती है। यह क्रम आगे भी जारी रहेगा।

बीएन चतुर्वेदी

आबकारी अधिकारी, सिवनीसिवनी। शराब माफियाओं के लिए रोजगार गारंटी योजना वरदान साबित हो रही है। इन योजनाओं में कार्य करने वाले मजदूरों में इनकी घुसपैठ बढ़ गई है। यही कारण है जिले के गांव-गांव में शराब ठेकेदारों द्वारा अवैध रूप से शराब बेचने का गोरखधंधा जमकर फल फूल रहा है। इस आशय के आरोप सांसद केडी देशमुख ने पुलिस अधीक्षक राकेश जैन से भेंट कर आरोपित किया है। ङ"ख१६ऋ

एसपी से देशमुख ने की मुलाकात

शराबियों से त्रस्त सांसद

रोगायो के मजदूरों में शराब माफिया की घुसपैठ पर जताई चिंता

सिवनी-बालाघाट क्षेत्र के विधायक केडी देशमुखने सोमवार को सिवनी के साप्ताहिक प्रवास के दौरान मीडिया से बात करते हुए कहा है कि अवैध शराबखोरी का व्यापार स्वर्णिम मप्र के निर्माण में बाधक बन रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार युवकों के माध्यम से शराब के ठेकेदारों ने जिस तरह अपना कारोबार गांव-गांव में फैलाया है वह इस जिले की प्रगति और युवकों के लिए खतरा साबित हो रहा है।

इन बातों पर ध्यान

गांव की छोटी-छोटी किराना दुकान और पान ठेलों में शाम होते ही जाम छलकने लगते हैं और अंडे बिकने लगते हैं। ग्रामीण विकास की जनकल्याणकारी योजनाओं में मजदूरी की बढ़त के बावजूद उनमें खुशहाली की जगह शराबखोरी ने स्थान ले लिया है। इस सामाजिक बुराई का शौक विशेषकर युवकों में धीरे-धीरे लत के रूप में बदल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची शराब का चलन भी इसी के चलते बढ़ गया है। कच्ची शराब के निर्माण में यूरिया के प्रयोग पर चिंता जताते हुए शराब निर्माताओं द्वारा शराब में तेज नशा की नीयत से यह यूरिया स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रही है। आबकारी विभाग पर बेलगाम होने का आरोप लगाते हुए सांसद श्री देशमुख ने कहा है कि आबकारी विभाग की सांठगांठ के कारण ही यह सामाजिक बुराई इस जिले में बढ़ गई है।

गांव-गांव किराना और पान दुकानों में बढ़ी शराब की बिक्री के कारण ढाबों और होटलों में भी शराबखोरी आम हो गई है। शराब बिक्री की इस कुव्यवस्था को समाजहित में प्रतिकूल बताते हुए सांसद ने पुलिस अधीक्षक राकेश जैन से इस पर युक्तियुक्त अंकुश लगाने की पहल करने का मशवरा दिया है।

मिला आश्वासन

स्वर्णिम मप्र की जगह शराबी प्रदेश बनने की आशंका से दुखी श्री देशमुख को पुलिस अधीक्षक ने शराबखोरी के विरूद्घ सार्थक कार्रवाई का आश्वासन भी दिया है।

जपं अध्यक्ष किरण का इस्तीफा


जपं अध्यक्ष किरण का इस्तीफा

सिवनी। विधायक नीता पटेरिया की कार्यशैली से त्रस्त होकर जनपद पंचायत की अध्यक्ष किरण अवधिया ने तत्काल प्रभाव से अपना त्याग पत्र पार्टी अध्यक्ष सुजीत जैन को सौंप दिया है। विभिन्न लोकार्पण, भूमिपूजन और समारोह आदि में विधायक नीता पटेरिया द्वारा उपेक्षित और अपमानित किए जाने के आरोप उन्होंने पत्रकार वार्ता में लगाए हैं। उड़ेपानी में प्रभारी मंत्री की उपस्थिति में सोमवार को आयोजित कार्यक्रमों में उनकी अनदेखी और जनपद क्षेत्र के आमंत्रण और शिलालेख में उनके नाम को स्थान न देने से वे दुखी हैं। श्रीमती अवधिया का आरोप है कि यह सब विधायक के इशारे पर हो रहा है।

अपराध रोकने बढ़ेगी गश्त


अपराध रोकने बढ़ेगी गश्त
सिवनी। दूसरे जिलों की अपेक्षा इस जिले में गंभीर अपराध नियंत्रण में हैं लेकिन चोरी की वारदातों में पहले की अपेक्षा बढ़ोत्तरी हुई है। चोरी की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए रात्रि गश्त बढ़ाई जाएगी। इस आशय की बात मंगलवार को एसपी कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में आईजी पी. मधुकुमार ने कही है।

श्री मधुकुमार का कहना है कि पुलिस कर्मचारियों के खिलाफ आने वाली किसी भी शिकायत को गंभीरता से लिया जाएगा। प्राप्त शिकायतों की जांच में दोषी पुलिसकर्मी के विरूद्घ सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही अच्छा कार्य करने वाले पुलिसकर्मी को पुरूस्कृत भी किया जाएगा।

जनवरी से मई माह तक के अपराधों की समीक्षा के बाद आईजी ने पाया है कि सिवनी जिले में अन्य जिलों की अपेक्षा गंभीर अपराधों की संख्या कम है हालांकि चोरी बढ़ना चिंता का विषय है। आईजी ने पुलिस लाईन का निरीक्षण कर पुलिस कर्मियों की समस्याएं और साप्ताहिक जनसुनवाई के दौरान उन्होंने जनता की शिकायतें भी सुनी। पुलिसकर्मियों ने डेमेज पुलिस क्वार्टर के संबंध में जब शिकायत की तो उन्होने कहा कि नए पुलिस क्वार्टर बनाए जाना प्रस्तावित है।

उन्होंने बताया कि जितने क्वार्टर की आवश्यकता है उतने तो अभी नहीं बन रहे हैं लेकिन तीन-चार वर्षों में इस समस्या का समाधान हो जाएगा। साप्ताहिक जनसुनवाई में आईजी के समक्ष छह आवेदकों ने आवेदन देकर अपनी समस्याएं सुनाई। इसमें ग्राम मोहगांव (कुरई) निवासी शिववती बाई ने ७ लोगों पर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की हत्या के साथ ही उसे प्रताड़ित करने के आरोप लगाए। इस मामले में उन्होने शीघ्र कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। इस पूरे प्रवास के दौरान पुलिस कप्तान राकेश जैन उनके साथ उपस्थित रहे।

Thursday, June 9, 2011

कहां गायब हो गए कांग्रेस के युवराज?


कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के युवराज और युवाओं के हिमायती राहुल गांधी आधी रात के बाद भट्टा परसौल गांव पहुंचे थे। राहुल के मुताबिक वहां वो किसानों के हक की लड़ाई लड़ने गए थे। वो भी तब, जब शायद उस समय उसकी कोई जरूरत नहीं थी। उनके जाने के बाद बहुत हंगामा हुआ और आधी रात की नौटंकी हिट रही । उत्तर प्रदेश सरकार ने जब उन्हें गिरफ्तार करके नोएडा की सीमा से बाहर भेज दिया तो खूब हो-हंगामा हुआ। 
कुछ दिन तक तो कांग्रेसी माया सरकार के खिलाफ लोकतंत्र की दुहाई देते हुए सड़कों पर नजर आए। इतना बवाल काटने का मतलब नहीं समझ में आया। भूमि अधिग्रहण की नीति केंद्र सरकार को तैयार करनी है और राहुल चाहते तो माया को घेरने के बजाय केंद्र सरकार पर दबाव बनाते। राहुल भट्टा पारसौल जाकर राजनीति की रोटी सेंकने की बजाय प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी को किसानों की परेशानी से अवगत कराते और भूमि अधिग्रहण की नीति बदलने पर विचार करने के लिए कहते तो उनकी मंशा पर कोई सवाल ही नहीं खड़ा करता, पर उन्होंने ऐसा बिलकुल नहीं किया। राहुल गांधी किसानों का दर्द बांटने तो पहुंचे, पर ग्रामीणों के हमले में मारे जाने वाले पुलिसकर्मी भी तो इंसान ही थे। क्या उन्हें भी मरहम की जरूरत नहीं थी? क्या उन के परिवार वालों को बड़ी हानि नहीं हुई थी? बात तो तब बनती जब राहुल उन मृतक पुलिसवालों के परिवार के पास जाकर भी सांत्वना प्रकट करते। 
शनिवार देर रात केंद्र सरकार के इशारे पर पुलिस ने नई दिल्ली के रामलीला मैदान में जो तांडव मचाया वह तो पूरी तरह से लोकतंत्र की हत्या है और अब कांग्रेस के युवराज कहां गायब हो गए? अब वो लोकतंत्र की दुहाई क्यों नहीं दे रहे? माया सरकार ने तो राहुल के साथ कुछ भी नहीं किया और न ही उनकी पार्टी के लोगों को कोई हानि पहुंचाई थी, लेकिन उनकी पार्टी की सरकार ने रामलीला मैदान में डटे देशवासियों के साथ अमानवीयता की हद को ही पार कर दिया। अब राहुल कोई प्रतिक्रया क्यों नहीं देते हैं? क्या रामलीला मैदान में जुटी भीड़ से उनका कोई वास्ता नहीं है? क्या उनके अपने लोगों की कोई कैटेगरी है। राहुल पहले ये तय कर लें कि उनके लोग क्या सिर्फ वही हैं, जो कांग्रेस को वोट देते हैं? यह दुर्भाग्य की बात ही है कि राहुल मुद्दों से तो जुड़े, लेकिन उन मुद्दों से जो ज्यादा प्रभावशाली नहीं हैं। वह कलावती के घर खाना खाने जाते हैं और बाइक पर बैठकर भट्टा पारसौल ही पहुंचना जानते हैं। आखिर वो जन लोकपाल बिल और काले धन के मामले में खुलकर सामने क्यों नहीं आते? सिर्फ इसलिए, क्योंकि उनकी सरकार पर ये दोनों मुद्दे आफत की तरह है। राहुल अगर इन मुद्दों पर भी अपना पूरा समर्थन देते तो देश की जनता यह समझती कि वास्तव में वह भी भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना करते हैं और पूरी ईमानदारी से बिना पार्टी और आलोचना की फिक्र किए उसके लिए लड़ाई भी लड़ने को तैयार हैं, पर कांग्रेस का यह भविष्य खामोश है। राहुल कहते हैं कि वो युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और चाहते हैं कि और भी युवा राजनीति में आएं, पर शनिवार की रात रामलीला मैदान में जो कुछ भी हुआ उसे देखकर युवा सियासत के दलदल से दूर रहना ही बेहतर समङोंगे। आखिर युवा राजनीति में क्यों आएंगे? युवा बदलाव करने की नीयत से आएंगे और जब बदलाव घाघ नेताओं को रास नहीं आएगी तो वो ऐसे ही तिकड़मों से लोकतंत्र और राजनीति को शर्मशार करते रहेंगे, जसा केंद्र सरकार के वयोवृद्ध नेताओं ने रामलीला मैदान में किया। खामोश राहुल किन तर्को के साथ युवाओं को अपने साथ जोड़ेंगे? राहुल का इन दोनों मुद्दों से न जुड़ना और रामलीला मैदान में जो कुछ भी हुआ उस पर उनका चुप रहना सिर्फ कांग्रेस की साख पर ही बट्टा नहीं लगाता, बल्कि राहुल के राजनीतिक चरित्र और भविष्य पर भी सवाल खड़ा करता है कि आखिर राहुल किस तरह की राजनीति करना चाहते हैं? साफ-सुथरी बदलाव वाली या यूं ही कभी न बदलने वाली नीतियों के साथ। 

Monday, June 6, 2011

बाबा रामदेव की मुहिम:जनरल डायर बनाम मनमोहन सिंह

 हुकूमत के काल में 13 अप्रेल 1919 में जनरल डायर ने अमृतसर के जलियां वाले बाग में निर्दोष लोगों को गोलियों से भून दिया था, यह था गोरी चमड़ी वालों की बर्बरता का नंगा नाच। महात्मा गांधी के आर्दशों पर चलकर देश को आजादी मिली और फिर कायम हुआ भारत गणराज्य जिसमें लोकतंत्र को सर्वोपरि माना गया। 4 और 5 जून की दर्मयानी रात दिल्ली में जो हुआ वह एक बार फिर ब्रितानी हुकूमत की सामंतवादी सोच का परिचायक कहा जाएगा। जिस तरह गोरों ने साम, दाम, दण्ड भेद की नीति पर चलकर देश पर राज किया, कमोबेश उसी तरह कांग्रेसनीत संप्रग सरकार द्वारा हाल ही में किया जा रहा है। अन्ना हजारे के बाद बाबा रामदेव के अनशन से हिली कांग्रेस को अब कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। बाबा रामदेव की मुहिम को जनता का समर्थन हासिल है, इस आंदोलन के दमन से सरकार की नीयत पर अनेक प्रश्नचिन्ह लग गए हैं। लोग इसकी तुलना जनरल डायर की अमानवीयता और आपातकाल (इमरजेंसी) से करने से नहीं चूक रहे हैं।

देश की सरकार एक और अन्ना हैं ‘हजारों‘, यह जुमला आज हर किसी की जुबां पर चढ़ चुका है। चाहे अन्ना हजारे ने बाबा के काले धन के मुद्दे को हाईजेक कर लिया हो, किन्तु 4 जून को स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान में जो भी किया उसे देखकर लगने लगा है मानो देश का आम आदमी भ्रष्टाचार घपले घोटालों से आजिज आ चुका है। इसके पहले अन्ना हजारे लोकपाल मामले में अपने तेवर दिखा चुके हैं। भले ही कांग्रेस इस मामले में बैकफुट पर हो, किन्तु बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ने कांग्रेस के थिंक टेंक्स को गंभीर मंत्रणा पर विवश कर ही दिया है।

भारत गणराज्य की स्थापना के साथ ही साफ कर दिया गया था कि भारत देश न तो कोई कम्युनिष्ट देश है, न ही दुनिया का चैधरी अमेरिका और न ही अरब देश की सामन्ती व्यवस्था का प्रतीक, जहां देश का सर्वोच्च नागरिक ‘स्वविवेक‘ से कोई भी कानून में तब्दीली का हक रखता हो। भारत गणराज्य में सबसे ताकतवर संवैधानिक पद ‘प्रधानमंत्री‘ का माना गया है, किन्तु उसे भी निचली अदालत से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत को सम्मन भेजकर हाजिर करने का हक है। इसी बिनहा पर यह कहा जा सकता है कि देश में हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इसे किसी भी कीमत पर छेड़ा नहीं जा सकता है।

बाबा रामदेव आखिर चाह क्या रहे हैं, यही न कि विदेशों में जमा देश का काला धन वापस स्वदेश लाया जाए। इसके लिए बाबा रामदेव लंबे समय से प्रयासरत हैं। यह अलहदा बात है कि उनकी इस मुहिम में बीच बीच में सडांध मारती राजनीति की बू भी आने लगती है, जब वे सियासत पर उतर आते हैं। लोगों को स्मरण दिलाना चाह रहा हूं कि जब लौह पुरूष का तमगा पाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन हुआ तब उनकी कुल संपत्ति 259 रूपए थी। एसे थे नीतियों पर चलने वाले राजनेता। आज के राजनेताओं के पास अकूत दौलत है। क्या आम आदमी से ज्यादा धन को राष्ट्रीय संपत्ति नहीं माना जाए!

बाबा रामदेव को मनाने के लिए कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के हालिया सबसे विश्वस्त दूत कपिल सिब्बल गए। सिब्बल और बाबा के बीच वार्ता चली, जो असफल ही रही। सिब्बल ने गोरे ब्रितानियों की चाल चलकर बाबा के राईट हेण्ड और कथित तौर पर नेपाली मूल के आचार्य बाल कृष्ण से अनशन समाप्ति का पत्र लिखवा लिया। यह बात समझ से परे है कि आखिर उन्होंने अनशन समाप्ति का पत्र अनशन प्रारंभ होने के पूर्व लिखकर क्यों दिया? कहीं एसा तो नहीं कि यह सब कुछ मिली जुली प्रायोजित कुश्ती हो? अमूमन इस तरह के पत्र अग्रिम में तो सरकार में शामिल करने के पूर्व मंत्रियों से लिखवाए जाते हैं ताकि समय बे समय काम आ सकें।

कांग्रेस का आरोप है कि बाबा के अनशन स्थल को फाईव स्टार सुविधाओं से लैस किया गया है। इसमें पैसा कौन लगा रहा है यह शोध का विषय है। सियासी दल के नुमाईंदे इस तरह के आरोप लगाने के पहले यह बात भूल जाते हैं कि जब कांग्रेस या भाजपा के अधिवेशन होते हैं तब फाईव तो क्या सेवन स्टार की सुविधाएं मुहैया होती हैं नेताओं को, तब वे इस तरह का प्रश्न दागने का नैतिक साहस क्यों नहीं कर पाते हैं? इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि बाबा के पीछे संघ है या भाजपा, सवाल तो यह है कि बाबा का मुद्दा सही है अथवा नहीं!

एक तरह से देखा जाए तो सरकार और कांग्रेस के ट्रबल शूटर बनकर एक कपिल सिब्बल पूरी तरह से असफल ही हुए हैं। बाबा रामदेव को कल शाम अनशन स्थल से उठाकर ले जाने का प्रयास किया है, बाद में 4 और 5 जून की दर्मयानी रात में उन्हें बलात उठाही लिया गया, जो निंदनीय है। यह तो अच्छा हुआ कुटिल राजनेताओं ने बाबा के अनशन स्थल पर असमाजिक तत्वों का उपयोग कर रंग में भंग नहीं डाला, वरना मामला कुछ और रंग ले चुका होता।

बाबा रामदेव के इस तरह के अनशन से उनके पक्ष में बयार बह निकली है। दिल्ली इस बात की गवाह है कि सरकार के दमन चक्र के बावजूद भी बाबा रामदेव देश ने की जनता के मजबूत कांधों पर बैठकर भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद किया। बाबा रामदेव की हुंकार के आगे अन्ना हजारे का कद अब बौना नजर आने लगा है।

पहले सियासत तब गर्माई थी जब पिछले साल बाबा रामदेव ने राहुल गांधी से मुलाकात की थी। पिछले माह बाबा रामदेव ने अपने कमोबेश हर साक्षात्कार में यही कहा कि सरकार के साथ बातचीत सकारात्मक चल रही है, पर इस बात से वे कन्नी ही काटते रहे कि क्या बातचीत चल रही है? एसा कौन सा हिडन एजेंडा था जिसे बताने में बाबा रामदेव आखिरी तक हिचकते रहे। बार बार सरकार के साथ बातचीत फिर अनशन और पत्र का खुलासा, फिर बाबा की धरपकड़! आम आदमी इस बात को समझ ही नहीं पा रहा है कि आखिर एकाएक बाबा रामदेव के साथ ‘सकारात्मक‘ बातचीत इस तरह की विपरीत परिस्थितियों में कैसे पहुंच गई?

जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी का यह कथन भी विचारणीय ही है कि बाबा रामदेव अनशन से पहले अपने 11 हजार करोड़ रूपए के साम्राज्य की सफाई अवश्य कर लें। कल तक जिनके पास साईकल के पंचर जुड़वाने के पैसे नहीं होते थे, वे बाबा रामदेव आज अकूत दौलत पर राज कर रहे हैं। बाबा रामदेव को शंकराचार्य के इस आरोप की सफाई देना ही होगा कि बाबा रामदेव अपनी राजनैतिक महात्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए यह अनशन कर रहे हैं। उधर सिने स्टार सलमान खान ने भी बाबा रामदेव को योग सिखाने पर अपना ध्यान केंद्रित रखना चाहिए। पर जो भी हो बाबा रामदेव के अनशन को कुचलकर कांग्रेस ने यह साबित कर ही दिया है कि देश में कानून और व्यवस्था नाम की चीज नहीं बची है। जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर सरकार ने सभी को एक ही लाठी से हांकने का कुत्सित प्रयास किया है।

बाबा रामदेव के काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे को कांग्रेस ने बहुत ही हल्के रूप में लिया। कांग्रेस को लगा योग सिखाने वाला एक बाबा आखिर कैसे सियासी ताकत के सामने टिक पाएगा। उधर बाबा रामदेव कछुए और खरगोश की कहानी में कछुए के मानिंद चलते रहे, अंत में अब बाबा रामदेव देश में सरकार के खिलाफ अलख जगाने में कामयाब हो ही गए। बाबा रामदेव ने योग से जुड़े लोगों को एक सूत्र में पिरोया और फिर सरकार को कटघरे में खड़ा कर ही दिया।

कांग्रेस के इक्कीसवीं सदी के चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह ने जहर बुझे तीरों के मार्फत बाबा रामदेव को आहत करना चाहा किन्तुू वे सफल नहीं हो सके। इसके बाद गंदी राजनीति के तहत बाबा रामदेव को सियासी ताने बाने में उलझाने का प्रयास किया गया, किन्तु बाबा रामदेव की साफगोई के चलते सरकार की चालें अंततः सामने आ ही गईं।

5 जून की मध्य रात्रि में बाबा रामदेव को अनशन स्थल से जिस तरह से उठाया गया वह लोकतांत्रिक तरीका किसी भी दृष्टिकोण से नहीं कहा जा सकता है। बाबा रामदेव की गिरफ्तारी को उनकी किडनेपिंग की संज्ञा दी जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। कांगे्रस का कहना है कि बाबा रामदेव द्वारा जनता को भड़काया जा रहा था, किन्तु कांग्रेस इस बात को स्पष्ट नहीं कर पाई कि आखिर कौन सी पंक्तियां थीं, जिनके माध्यम से बाबा रामदेव द्वारा लोगों को भरमाया जा रहा था।

पूरे घटनाक्रम का तातपर्य यह ही हुआ कि अगर आप सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे तो आपका बलात शमन कर दिया जाएगा। ये परिस्थितियां इसलिए भी निर्मित हो रही हैं क्योंकि निहित स्वार्थ को प्राथमिक मानकर लंबे समय से सत्ता, विपक्ष, नौकरशाही और मीडिया का गठजोड़ हो गया है। यही कारण है कि आज शासकों द्वारा लोकतंत्र को अपने जूते के तले रोंदने में जरा भी हिचक नहीं की जाती है। समय रहते अगर हम नहीं चेते तो देश में हिटलरशाही राज कायम होने में समय नहीें लगने वाला। इस पूरे मामले में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी एवं ईमानदार छवि के धनी वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह की चुप्पी भी आश्चर्यजनक ही कही जाएगी।