Friday, July 22, 2011

न तो आज प्रेस स्वतंत्र है और न ही पत्रकार की कलम

आधुनिक तकनीक ने समाचार.पत्रों तथा दूसरे संचार माध्यमों की क्षमता बढ़ा दी हैए लेकिन क्या वास्तव में पत्रकारों की कलम ऐसा कुछ लिखने के लिए स्वतंत्र हैए जिससे समाज और देश का भला होघ् आज जब हम समाचार.पत्र की आजादी की बात कहते हैंए तो उसे पत्रकारों की आजादी कहना एक भयंकर भूल होगी। आधुनिक तकनीक ने पत्रकार के साथ यही किया हैए जो हर प्रकार के श्रमिक.उत्पादकों के साथ किया है। वर्तमान में पत्रकारए राजनीती अफ्सर्शाई ओर अखबारों के गुलाम बनकर रह गए हैं।
हरेक राष्ट्र और समाज को अपनी अन्य स्वतंत्रताओं की तरह प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भी हमेशा सतर्क और जागरूक रहना होता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में स्वतंत्र प्रेस का अपना ही महत्व है। इससे प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ती है और आर्थिक विकास को बल मिलता हैए लेकिन समाज का चौथा स्तंभ कहलाने वाले प्रेस और पत्रकारों की स्थिति बहुत संतोषजनक भी नहीं है। खासकर भारत देश में पत्रकारों की हालत ज्यादा ही खराब है। महानगरों में काम करने वाले पत्रकार जैसे.तैसे आर्थिक रूप से संपन्न हैए मगर छोटे शहरों व कस्बों में काम वाले पत्रकारों की दशा आज इतनी दयनीय हैए कि उनकी कमाई से परिवार के लोगों को दो वक्त का खाना मिल जाएए वही बहुत है।
हांए यह बात अलग है कि कुछ पत्रकार गलत तरीके से पैसे कमाकर आर्थिक रूप से संपन्न हो रहे हैए लेकिन ज्यादातर पत्रकारों को प्रेस की स्वतंत्रता के बावजूद न केवल कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा हैए बल्कि उन पर खतरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के मुताबित पिछले साल विभिन्न देशों में 70 पत्रकारों को जान गंवानी पड़ीए वहीं 650 से ज्यादा पत्रकारों की गिरफ्तारी हुई। इसमें से ज्यादातर मामलों में सरकार व पुलिस ने घटना की छानबीन करने के बाद दोषियों को सजा दिलाने की बड़ी.बड़ी बातें कीए मगर नतीजा कुछ नहीं निकला। कुछ दिनों तक सुर्खियों में रहने के बाद आखिरकार मामले को पुलिस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। कुछ माह पहले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में सरेराह एक पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी गईए वहीं छुरा के एक पत्रकार को समाचार छापने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।अभी कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में देनिक भास्कर के एक पत्रकार को जिला चिकित्सालय के एक कर्मचारी ने कवरेज करने पर पत्रकार संतोष दुबे के साथ हातापाई की ओउर केमरा तोड़ डाला और जान से मारने की धमकी तक दे डाली सिवनी जिले में स्वास्थ्य विभाग जनहितेषी कार्यो से अपनेको विलग कर चुका है और इस संबंध में चिकित्सकों की मनमानी भ्रष्टाचार संबंधी जानकारियों सुर्खियों में रहती हैं जबकि सिवनी जिले के दो विधायकों श्रीमती नीता पटेरिया विधायक सिवनी अध्यक्ष प्रदेश महिला मोर्चा भाजपा एवं श्रीमती शशि ठाकुर विधायक लखनादौन दोनो के पति जिला चिकित्सालय में उच्च पद पर नियुक्त हैं। इसके बावजूद भी सिवनी जिला चिकित्सालय में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है हर दिन जिला चिकित्सालय के फर्जीवाड़े एवं भ्रष्टाचार के मामले समाचार पत्रों में सुर्खियों में रहते हैं। यहां के कार्यालयों के सभी कार्य अधिकारियों ने चपरासियों के हवाले छोड़ दिया है। ऐसे ही कुछ मामलों की जानकारियां ले रहे दैनिक भाष्कर समाचार पत्र के पत्रकार संतोष दुबे को अस्पताल प्रशासन के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी द्वारा जान से मार देने की धमकी दी गई।
घटना दिनांक 28 जून 2011 को 10ः45 बजे की है जहां कोई भी चिकित्सक अपनी ड्यूटी पर उपस्थित नहीं था जिसकी शिकायत पत्रकार संतोष दुबे को दूरभाष द्वारा मरीजों ने दी। ड्यूटी पर लापरवाही और मनमानी करने वाले चिकित्सकों की जानकारी लेने पहुंचे संतोष दुबे को पहले चिकित्सकों की सह पर भृत जगतराम कुम्हरे ने विवाद किया फिर जान से मारने की धमकी भी दी। धमकी के डर से सहमे पत्रकार श्री दुबे घर चले गये फिर सिवनी में ही एस.पी. कार्याल में जबलपुर से आय आई.जी. वी. मधुकुमार की पत्रवार्ता में शामिल हुए पत्रवार्ता दोपहर 1 बजे आयोजित हुई जो 1 घण्टे चली। पत्रकारवार्ता के बाद संतोष दुबे ने जान से मारने की धमकी की जानकारी पुलिस विभाग के अधिकारी एवं उपस्थित साथी पत्रकारों को दी जिसपर उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों से चर्चा करनी चाही और कुछ पत्रकार साथियों के साथ जिला अस्पताल पहुंचे। दोपहर 2ः30 बजे भी जिला अस्पताल में कोई चिकित्सक या चिकित्सा अधिकारी मौजूद नहीं थे अतः मोबाईल पर सी.एच.एम.ओ. ठाकुर से संपर्क साधा गया जो भोपाल गये थे उन्होंने सिविल सर्जन मेसराम से बात करने को कहा जब मेसराम से संपर्क साधा गया तो उन्होंने इस मामले में कोई बात करने से इंकार कर दिया। लगातार संपर्क साधने पर और धरना आंदोलन की धमकी के बाद सिविल सर्जन घटना स्थल पर पहुंचने की बात कही उधर दूसरी ओर पत्रकारों और वहां उपस्थित कुछ स्वास्थ्य कर्मियों के बीच विवाद भी हुआ और धमकी के लहज़े में कुछ स्वास्थ्य कर्मचारियों ने सिविल सर्जन के कक्ष में लगे दो कांच फोड़ दिये और मामले में पत्रकारों को फंसाने की बात कही वहीं उपस्थित पत्रकारों ने अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सविता सुहाने को घटना की जानकारी दी जिसके 15 मिनट बात एस.डी.ओ.पी. एन.डी. जाटव और कोतवाली प्रभारी विजय तिवारी घटना स्थल पर पहुंचे इनके साथ ही सिविल सर्जन भी पहुंच गये। इस समय लगभग 2ः45 मिनट हुआ था यहां पुलिस अधिकारियों के सामने भी सिविल सर्जन और स्वास्थ्य कर्मचारी पत्रकारों को धमकाते रहे। ये सब घटनाक्रम पुलिस अधिकारियों के सामने चल रहा था। जबकि जबलपुर आई.जी. मात्र एक किलो मीटर की दूरी पर उपस्थित पुलिस अधिकक्षक कार्यालय में थे। इस घटना की पत्रकारों ने एफ.आई.आर. भी कराना चाही और पत्रकार थाना कोतवाली पहुंचे जहां थाना प्रभारी विजय तिवारी ने औपचारिक्ता का निर्वाह करते हुए पत्रकारों की शिकायत ले ली लेकिन सुलहनामा और शांत रहने की बात करते हुए एफ.आई.आर. दर्ज नहीं की। क्योंकि जिले की दो विधायिकाओं के पति इस कार्यालय में उच्च पद पर पदस्थ हैं। पूरे मामले का अहम पहलू यह भी रहा कि चौहते दिन पता चला कि सिवनी कोतवाली में दैनिक भास्कार के पत्रकार संतोष दुबे एवं अन्य 25 पत्रकारों के विरूद्ध सिवनी पुलिस ने शासकीय कार्य में बाधा डालने तोड़फोड़ करने और जानसे मारने की धमकी देने का उल्टा मामला पत्रकारों पर दर्ज कर दिया जिसमें धाराओं 353, 147, 427, 494 एवं अन्य धारायें लगाइ यह पहला मामला नहीं है कि सिवनी में किसी पत्रकार के उपर झूठा मामला दर्ज किया हो। इससे पूर्व में भी बीसों मामले सिवनी के पत्रकारों पर फर्जी बनाये गये हैं जिसमे कभी पत्रकारों पे १५३ की धरा तो कभी ११० की धरा लगाकर पुलिस ने कार्यवाही कर पत्रकारों को जेल भेज दिया हे इन पत्रकारों का दोष सिर्फ इतना रहा की इन्होने शासन में हो रहे ब्रश्ताचार के खिलाफ अपने समाचार पात्र अवेम चेनलो में खबरे प्रकाशित कर सच्चाई को जनता के सामने लाने का प्रयास किया था। इन सब मामलों का आखिर क्या हुआघ् इसका जवाब पुलिस व सरकार के पास भी नहीं है। इसीलिए अक्सर पत्रकारों के साथ हुई घटनाओं में कार्रवाई के सवाल पर नेता व पुलिस अधिकारी निरूत्तर होकर बगले झांकने लगते हैं।
फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के मुताबित वैश्विक स्तर पर प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति में लगातार गिरावट आ रही है। यह गिरावट केवल कुछ क्षेत्रों में नहींए बल्कि दुनिया के हर हिस्से में दर्ज की गई है। फ्रीडम हाउस पिछले तीन दशकों से मीडिया की स्वतंत्रता का आंकलन करता आया है। उसकी ओर से हर साल पेश किया जाने वाला वार्षिक रिपोर्ट बताता है कि किस देश में मीडिया की क्या स्थिति है। प्रत्येक देश को उसके यहां प्रेस की स्वतंत्रता के आधार पर रेटिंग दी जाती है। यह रेटिंग तीन श्रेणियों के आधार पर दी जाती है। एकए मीडिया ईकाइयां किस कानूनी माहौल में काम करती हैं। दूसराए रिपोर्टिग और सूचनाओं की पहुंच पर राजनीतिक असर। तीसराए विषय वस्तु और सूचनाओं के प्रसार पर आर्थिक दबाव। फ्रीडम हाउस ने पिछले वर्ष 195 देशों में प्रेस की स्थिति का आकलन किया हैए इनमें से केवल 70 देश में ही प्रेस की स्थिति स्वतंत्र मानी गई हैए जबकि अन्य देशों में पत्रकारए प्रेस के मालिक के महज गुलाम बनकर रह गए हैंए जिनके पास अपने अभिव्यक्ति को समाचार पत्र में लिखने की स्वतंत्रता भी नहीं हैं।
आज समाज के कुछ लोग आजादी के पहले और उसके बाद की पत्रकारिता का तुलना करते हैं। वे कहते हैं कि पहले की पत्रकारिता अच्छी थीए जबकि ऐसा कहना सरासर गलत होगा। अच्छे और बुरे पत्रकार की बात नहीं हैए आज आधुनिक तकनीक के फलस्वरूप पत्रकारिता एक बड़ा उद्योग बन गया है और पत्रकार नामक एक नए किस्म के कर्मचारी.वर्ग का उदय हुआ है। हालात ऐसे बन गए हैं कि दूसरे बड़े उद्योगों को चलाने वाला कोई पूंजीपति इस उद्योग को भी बड़ी आसानी से चला सकता है या अपनी औद्योगिक शुरुआत समाचार.पत्र के उत्पादन से कर सकता है। इस उद्योग के सारे कर्मचारी उद्योगपति के साथ.साथ पत्रकार हैं। यहां पर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में प्रेस स्वतंत्र है इसके जवाब में यही बातें सामने आती हैं कि न तो आज प्रेस स्वतंत्र है और न ही पत्रकार की कलम। हकीकत यह है कि प्रेस जहां सरकार के हाथों की कठपुतली बन गई हैए वहीं पत्रकार की कलम मालिकों की गुलाम है। आज कोई प्रेस यह दावा नहीं कर सकती है कि वह पूरी तरह से स्वतंत्र है और उसके अखबार में वही छपता हैए जो उसके पत्रकार लिखते हैं। कोई पत्रकार भी आज यह दावा नहीं कर सकता है कि वह जिस हकीकत को लिखते हैं उसको छापने का हक उनके पास है! अगर हकीकत यही है तो फिर किस बात की स्वतंत्रता

अब्दुल काबिज़ खान
9993779966

Sunday, July 10, 2011

अवैध शस्त्र निर्माण में थांवरी निवासी आरोपी समेत खरीदार गिरफ्तार, पूछताछ जारी

छपारा पुलिस ने बरामद किए बंदूक बनाने का सामान जब्त
अवैध शस्त्र निर्माण में थांवरी निवासी आरोपी समेत खरीदार गिरफ्तार, पूछताछ जारी
जबलपुर से स्टील रॉड लाकर बनाता था १२ बोर की बंदूकें


सिवनी। जुगाड़ से १२ बोर की बंदूक और बंदूक के खाली खोकों की कारतूस बनाने के आरोप में ग्राम थांवरी (छपारा) निवासी अख्तर मोहम्मद उर्फ बाबा पिता गुलाम मोहम्मद (३४) को गिरफ्तार किया है।
छपारा पुलिस ने २५ एवं २७ आर्म्स एक्ट एवं वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम १९७२ की धारा ४९ एवं ५१ का मामला भी आरोपियों के विरुद्घ बनाया गया है। सांभर के दो सींग भी उससे जब्त हुए हैं। आरोपी द्वारा बनाई गई बंदूक उसने २ हजार रु में सरेखा निवासी सुरेश काकोड़िया को बेचा था जिसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
आरोपी ने बताया है कि शफी नामक एक व्यक्ति को एक बंदूक और भी बेचा है जिसकी पड़ताल की गई तो वह नहीं मिला। बंदूक के खाली खोके वह गोरखपुर निवासी जकी मुसलमान से खरीदता था। वह भी पुलिस को नहीं मिल पाया है।
पुलिस कंट्रोल रूम में आयोजित पत्रकार वार्ता में पुलिस अधीक्षक राकेश जैन ने बताया है कि आरोपी वर्ष २००६ में भी इसी आरोप में पकड़ा जा चुका था और उसके विरुद्घ आज भी न्यायालय में मामला विचाराधीन है।
श्री जैन ने कहा है कि आरोपियों द्वारा बताए गए कुछ और नामों में विवेचना जारी है। इसलिए उनके नामों का खुलासा अभी किया जाना उचित नहीं होगा। उन्होने कुछ और गिरफ्तारियों की उम्मीद जताई है।

Thursday, July 7, 2011

'देल्ही - बेली''

'देल्ही - बेली'' के अश्लील संवाद और सीन के लिए फिल्म के निर्माता आमिर खान को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जवाब देना होगा.एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आमिर खान के साथ सेंसर बोर्ड,राज्य सरकार और जबलपुर कलेक्टर से भी सोमवार तक जवाब तालाब किया है.याचिका पर अगली सुनवाई मंगलवार को होगी.ये जनहित याचिका जबलपुर के एक नामी चिकित्सक डॉ अजय सेठ द्वारा दायर की गई है.उन्होंने जनहित याचिका में फिल्म के प्रदर्शन पर रो लगाने की अपील करते हुए कहा कि ऐसी फिल्मे समाज पर गलत असर डालती है.

Saturday, July 2, 2011

हमारी सरकार की सबसे लाडली बेटी का नाम है महँगाई,


हमारी सरकार की सबसे लाडली बेटी का नाम है महँगाई,

हमारी सरकार की सबसे लाडली बेटी का नाम है महँगाई, पैदा होते ही इसकी बढ़ने लगी थी लम्बाई। तीन वर्षों में ही छः फुट सवा सात इंच की हो गई है, उसकी लाज शर्म देश की अस्मिता की तरह से न जाने कहाँ खो गई है । गरीब देश की बेटी है इसलिए अमरीका जैसे किसी भी राष्ट्र को... परवाह नहीं है, विश्व बैंक को भी काबू में लाने की चाह नहीं है। हर कोई जानता है कि गरीब की बेटी को कर्ज ले कर ही ब्याहा जाता है, उधार ले कर पिए गए घी का मूलधन कब चुकाया जाता है । इसके ताऊ मनमोहन सिंह जी जाने माने अर्थशास्त्री हैं परन्तु इसकी तेज गति को भाँप नहीं पाये, चच्चा चिदंबरम भी इसके मन की गहराईयों में झाँक नहीं पाए। दादी सोनिया ने जरूर इसके ऊँचे होते हुए कद पर चिन्ता जताई थी, राहुल भैया की चिन्ता उन्हें दूसरों से पहले समझ में आई थी। पर चच्चा चिदंबरम ने साफ कह दिया मेरे पास जादू कोई छड़ी नहीं है कि इसे बौना बना दूँ, हाँ इतना कर सकता हूँ कि इसकी सांवली सूरत को सलौना बना दूँ। जब यह पैदा हुई थी तब चाटुकार रिश्तेदारों ने कहा था कि घर में लक्ष्मी आई है, परन्तु कुछ हितचिन्तकों ने चिन्ता जताते हुए कहा था- ताऊ यह तो साक्षात महँगाई है। देश में हो रही कन्याओं की भ्रूण हत्यायों की तरह इसकी भी हत्या अब तक नहीं कर पाये तो अब जन्म लेते ही इसका टेंटुआ दबा दो, इसे मार कर किसी गहरे गड्ढे में गिरा दो। एक बार खरपतवार की तरह से बढ़ जायेगी तो सच मानों सारे विकास की फसल यह अकेली ही खायेगी। आप ने भले ही देश में कन्याओं का अनुपात घटाया है पर इसे अवश्य ही सिर माथे पर बिठाया है। यह सच है कि आपके कुछ चमचों ने कहा था कि यह तो विकास की निशानी है, देश में होने वाले भावी विकास रूपी शिशु की प्यारी सी नानी है। महँगाई बढ़ेगी तो लोगों के पास अधिक धन आयेगा, गरीब भी उसे खर्च करने में नहीं शर्मायेगा। रोज छपने वाले नए नए नोटों पर गांधी जी का चेहरा चमचमायेगा, रिक्शावाला भी आटा दाल खरीदने के लिए नोटों का थैला लाद कर ले जायेगा। जब ग्रामों वाली थैली में दाल मिलेगी तभी तो देश की प्रगति की गाड़ी हिलेगी। चलेगी नहीं, लोगों को भरमायेगी, गाड़ी भाग रही है यह जानकर आपकी धाक बैठ जायेगी। लोग समझेंगे उनके वेतन बढ़ रहे हैं, आप दावा करना कि वे विकास की सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं। फिर से इतिहास का वह दौर आयेगा जिसमें लोग रोटी न मिलने पर केक खाते हैं, रोम के जलने पर नीरो तो बाँसुरी ही बजाते हैं। प्याज के छिलके जैसे आपकी लाडली लोगों के कपड़े उतार रही है, पश्चिमी सभ्यता के नए नए फैशन से देश को सँवार रही है । बदन नंगा होने पर कपड़ा तो बचता है यह सब जानते हैं, पर अपनी नाक रखने के लिए उसे आधुनिक फैशन ही मानते हैं। ऐसी हालत में गुंडों की गंदी नजरों में सरकार की बेटी चढ़ रही है, चच्चा कह रहे हैं कि सट्टेबाजों, जमाखोरों और मुनाफाखोरों जैसे पड़ोसियों की वजह से महँगाई बढ़ रही है। घर में बेरी लगी होगी तो पत्थर आयेंगे ही, जवान महँगाई को देख कर लम्पट पड़ोसी ललचायेगें ही। ताऊ जी ने अपने क्षत्रपों को कह दिया है कि वे ऐसे पड़ोसियों के साथ सख्ती से निपटे, उनके मोहल्ले में कोई महँगाई के साथ न चल पाये सटके। ताऊ को उस वर्ग की सबसे ज्यादा चिन्ता है जो इसे गोद में उठा कर खुश होता है, उसका पूरा भार अपने कंधों पर ढोता है । गरीब के कंधे कमजोर होते हैं यह तो वह भी जानते हैं, पर महँगाई उनकी लाडली है यह भी सब मानते हैं। अर्थशास्त्री मानते हैं कि महँगाई के बढ़ने से बाजार में रौनक आयेगी, इससे गरीब की बेटी भी पब्लिक स्कूल में पढ़ने के लिए जायेगी। जो रिक्शावाला दिन में दो चार रुपए कमाता था अब वह चार सौ कमाता है, उसका चच्चा के पास पैन कार्ड वाला खाता है। यह दीगर बात है कि कमबख्त का परिवार आज भी आधा पेट खा कर पटरी पर सो जाता है। जिसे बीस के आगे की गिनती नहीं आती थी वह हजारों में गिनना सीख गया है क्योंकि अब वह चिल्लर की जगह नोट कमाता है, और अपने छोटे से जीवन में ही लाखों की झोंपड़ी का मालिक बन जाता है। महँगा रूपी लक्ष्मी की कृपा से अब ोंपड़ी भी पगड़ी के रंग रूप देख रही है, सरकार है कि किसान की एकड़ों में छनी गई जमीन इंचों की नाप में बेच रही है। महँगाई का साथ पा कर लोग धन्य हो रहे हैं, महँगाई की जवानी के नशे में दिन रात खो रहे हैं। यह जिसके सिर पर बैठती है उसका सिर ऊँचा उठ जाता है, समाज में उसका रुतबा लक्ष्मी की ठनक सा ठनठनाता है । जिसकी कमर पर चढ़ती है उसे तोड़ डालती है, मध्यवर्ग की पगड़ी भरे बाजार उछालती है। मध्य वर्ग पर ही यह करती है सबसे करारा प्रहार, उसके लिए तो महँगाई है नयनों से भी ज्यादा तीखी कटार। जो गरीब इसे पैरों में बिठाता है वह सीधा नरक में जाता है। हाँ अमीर के लिए यह अवश्य ही पाँव की जूती है, गरीब की बेटी है पर उसके लिए रखैल सरीखी है। इसीलिए बड़ी और भव्य पार्टियों में यह देती नहीं दिखाई, वहाँ पर तो सिर्फ सजावट की चीज ही बन कर रह गई है महँगाई,.,,..