Saturday, April 23, 2011

गांधी के ब्रह्यचर्य पर नई बहस



जोज़फ लेलीवेल्ड का भला हो कि उनकी वजह से गांधी पर एक बार फिर लंबी-चौड़ी बहस शुरू हो गई है| कृतज्ञ भारत गांधी को सिर्फ हर 2 अक्तूबर या 30 जनवरी को याद करने को मजबूर हो जाता है वरना गांधी अब अजायबघर की वस्तु हो गए हैं| लेलीवेल्ड की पुस्तक ”ग्रेट सोल : महात्मा गांधी एंड हिज़ स्ट्रगल विथ इंडिया” कोई चालू किताब नहीं है| लेलीवेल्ड ने वर्षों के अनुसंधान के बाद यह पुस्तक लिखी है| वे ‘पुलिट्रजर’ जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के विजेता हैं| वे ‘न्यूयार्क टाइम्स’ के कार्यकारी संपादक भी रह चुके हैं| उन्हें भारत और दक्षिण अफ्रीका में रहकर काम करने का भी अच्छा अनुभव है| उन्होंने अपनी पुस्तक पर लगे प्रतिबंध की कड़ी भर्त्सना की है और इस आरोप को बिल्कुल निराधार बताया है कि उन्होंने गांधी को समलैंगिक या नस्लवादी कहा है| उनका कहना है कि इस तरह के शब्द उनकी पुस्तक में कहीं आए ही नहीं हैं|
लेलीवेल्ड बिल्कुल ठीक हैं| उन्हें उनके शब्दों के आधार पर कोई भी नहीं पकड़ सकता लेकिन उनकी पुस्तक की एक समीक्षा ने उन्हें विवादास्पद बना दिया| एक बि्रटिश अखबार ने इस समीक्षा को आधार बनाकर महात्मा गांधी और उनके शिष्य हरमन कालेनवाख के संबंधों को उछाल दिया| उसने लेलीवेल्ड द्वारा वर्णित तथ्यों की ऐसी वक्र-व्याख्या की कि गांधी एक बार फिर चर्चा के घेरे में आ गए| लेलीवेल्ड ने गांधी और कालेनबाख के संबंधों के बारे में जो भी लिखा है, वह प्रामाणिक दस्तावेजों के आधार पर लिखा है| संपूर्ण गांधी वाड्रमय से उन्होंने कालेनबाख के नाम गांधी के पत्रें को उद्रधृत किया है|
ये हरमन कालेनबाख कौन थे ? कालेनबाख गांधी से दो साल छोटे थे| वे जर्मन-यहूदी थे| वे 1904 में गांधी से मिले| गांधी और कालेनबाख इतने घनिष्ट मित्र् बन गए कि वे एक-दूसरे को दो शरीर और एक आत्मा मानते थे| कालेनबाख ने ही अपनी 1100 एकड़ भूमि गांधीजी को दी थी, जिस पर उन्होंने ”तॉल्सतॉय फार्म” नामक आश्रम खड़ा किया था| वे गांधी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने ब्रह्यचर्य और शाकाहार का व्रत ले लिया| वे गांधीजी के सत्याग्रहों में जमकर भाग लेते, संगठनात्मक कार्य करते और आश्रम की व्यवस्था भी चलाते| ऐसे दो परम मित्रें के बीच समलैंगिक संबंधों की बात कैसे उठी ?
लेलीवेल्ड ने गांधीजी के पत्रें के कुछ शब्दों को इस तरह उद्रधृत किया कि उनके दोहरे अर्थ लगाए जा सकते हैं| जैसे गांधीजी खुद को ‘अपर चेंबर’ (उच्च सदन) और कालेनबाख को ‘लोअर चेम्बर’ (निम्न सदन) लिखा करते थे| लेलीवेल्ड ने इन दो शब्दों को तो उछाला लेकिन उन्होंने और उनके समीक्षकों ने यह नहीं बताया कि वे ऐसा क्यों लिखते थे ? कालेनबाख ‘लोअर हाउस’ की तरह बजट बनाते थे और गांधीजी ‘अपर हाउस’ की तरह उसमें कतरब्योंत कर देते थे| इस आर्थिक पदावलि को यौन पदाविल में बदलनेवाले मस्तिष्क को आप क्या कहेंगे ? यह आधुनिक पश्चिमी जीवन-पद्घति का अभिशाप है| इसी तरह गांधी के पत्रें में जगह-जगह कालेनबाख के लिए लिखे गए ”स्नेह और अधिक स्नेह” जैसे शब्दों का भी गलत अर्थ लगाया गया| गांधी द्वारा अपने शयन-कक्ष में रखे गए कालेनबाख के चित्र् को भी उसी अनर्थ से जोड़ा गया| गांधी के लगभग 200 पत्रें में उन्होंने कालेनबाख से अपने पूर्व-जन्म के संबंधों की बात भी कही है| ये सब बातें किसी भी भौतिकवादी सभ्यता के ढांचे में पले-बढ़े विद्वान या पत्र्कार के लिए अजूबा ही हो सकती हैं| वे यह मानकर चलते हैं कि दो पुरूषों या दो महिलाओं के बीच परम आत्मीयता का भाव रह ही नहीं सकता| यौन संबंधों के बिना आत्मीय संबंध संभव ही नहीं हंंै|
वास्तव में गांधी इतने विलक्षण और इतने अद्वितीय थे कि उन्हें न तो परंपरागत पश्चिमी चश्मों से देखा जा सकता है और न ही परंपरागत भारतीय चश्मों से ! गांधी का सही रूप देखने के लिए मानवता को अपना एक नया चश्मा बनाना पड़ेगा| गांधी ने अपनी आत्म-कथा को ”मेरे सत्य के प्रयोग’ कहा है| यदि वे कुछ वर्ष और जीवित रहते और मेरी उनसे भेंट हो जाती तो मैं उनसे कहता कि आप एक आत्म-कथा और लिखिए और उसका शीर्षक दीजिए ‘मेरे ब्रह्यचर्य के प्रयोग’ ! उनकी यह दूसरी आत्म-कथा भी मानवता की बड़ी सेवा करती| मानव-समाज को तब यह मालूम पड़ता कि दुनिया में महापुरूष तो एक से एक बढ़कर हुए लेकिन गांधी-जैसा कोई नहीं हुआ| पिछले 55 वर्षों में गांधीजी के निजी जीवन पर चार-पांच ग्रंथ आ चुके हैं| जिनमें प्रो. गिरजाकुमार का शोध सर्वश्रेष्ठ है लेकिन अभी इस रहस्यमय मुद्दे पर काफी काम होना शेष है|
कामदेव से कौन पराजित नहीं हुआ ? क्या माओ, क्या लेनिन, क्या हिटलर, क्या आइंस्टीन, क्या कार्ल मार्क्स, क्या सिगमिंड फ्रायड, क्या तॉल्सतॉय, क्या लिंकन, क्या केनेडी और क्या क्लिंटन ? दुनिया के किसी भी बलशाली या धनशाली व्यक्ति का नाम लीजिए और उसके पीछे कोई न कोई रेला निकल आएगा| जिन्हें विभिन्न मज़हब और संप्रदाय अपना जनक कहते हैं और जिन्हें अवतारों और देवताओं की श्रेणी में रखा जाता है, ऐसे महापुरूष भी यौन-पिपासा के शिकार हुए बिना नहीं रहे लेकिन गांधी गजब के आदमी थे, वे 79 साल की उम्र में भी कामदेव से लड़ते रहे और उसे परास्त करते रहे| 37 साल की भरी जवानी में उन्होंने जो ब्रह्यचर्य का व्रत लिया, उसे उन्होंने अंतिम सांस तक निभाया| उन्होंने अपनी यौन-शक्ति का उदात्तीकरण किया| वे ऊर्ध्वरेता बने| जब कभी कुछ लड़खड़ाहट का अंदेशा हुआ, उन्होंने उसे छिपाया नहीं| अपने अति अंतरंग अनुभवों को भी उन्होंने अपने संपादकीय में लिख छोड़ा| वे सत्य के सिपाही थे| यदि मन में सोते या जागते हुए भी कोई कुविचार आया तो उन्होंने उसे अपने साथियों को बताया और उसके कारण और निवारण में वे निरत हुए|
ज़रा याद करें कि अपनी आत्म-कथा में उन्होंने अपनी कामुकता का चित्र्ण कितनी निर्ममता से किया है| उन्होंने अंतिम सांसें गिनते हुए पिता की उपेक्षा किसलिए की ? सिर्फ काम-वासना के वशीभूत होने के कारण ! इस काम-शक्ति ने अंतिम दम तक गांधी का पीछा नहीं छोड़ा| दक्षिण अफ्रीका में सिर्फ कालेनबाख ही नहीं, हेनरी पोलक और उनकी पत्नी मिली ग्राहम तथा उनकी 16 वर्षीय सचिव सोन्या श्लेसिन के साथ गांधी के संबंध इतने घनिष्ट और आत्मीय रहे कि कोई चाहे तो उनकी कितनी ही दुराशयपूर्ण व्याख्या कर सकता है| मिस श्लेसिन को केलनबाख ही गांधीजी के पास लाए थे| गांधीजी ने लिखा है कि श्लेसिन बड़ी नटखट निकली ”लेकिन एक महिने के भीतर ही उसने मुझे वश में कर लिया|” अपने पुरूष और महिला मित्रें के साथ गांधी के संबंध इतने खुले और सुपरिभाषित होते थे कि कहीं किसी प्रकार की मर्यादा-भंग का प्रश्न ही नहीं उठता था| तॉल्सतॉय फार्म और फीनिक्स आश्रम में गांधी जैसे खुद रहते थे, वैसे ही वे अपने अनुयायियों को भी रहने की छूट देते थे| उसका नतीज़ा क्या हुआ ? दोनों स्थानों पर अपि्रय यौन-घटनाएं घटीं| गांधी को विरोधस्वरूप उपवास करना पड़ा| कुछ लोगों को निकालना पड़ा| उनके अपने बेटे को दंडित करना पड़ा| गांधी-जैसे लौह-संयम और पुष्प-सुवास की-सी उन्मुक्त्ता क्या साधारण मनुष्यों में हो सकती है ? इन दो अतियों का समागम गांधी-जैसे अद्वितीय व्यक्ति में ही हो सकता था|
गांधीजी के दबाव में आकर आग्रमवासी ब्रह्यचर्य का व्रत तो ले लेते थे लेकिन वे लंबे समय तक उसका पालन नहीं कर पाते थे| स्वयं कालेनबाख इसके उदाहरण बने| गांधी के बड़े-बड़े अनुयायी वासनाग्रस्त होने से नहीं बचे लेकिन गांधी ने कभी घुटने नहीं टेके| गांधीजी के आश्रमों में रहनेवाले युवक-युवतियों को वे काफी छूट देते थे लेकिन उन पर कड़ी निगरानी भी रखते थे|
जहां तक कालेनबाख का सवाल है, वे उन्हें ‘लोअर चेंबर’ कहकर जरूर संबोधित करते थे लेकिन ऐसे अड़नाम उन्होंने अपने कई अन्य पुरूष और महिला मित्रें को दे रखे थे| रवीद्रनाथ ठाकुर की भतीजी सरलादेवी चौधरानी को वे अपनी ‘आध्यात्मिक पत्नी’ कहा करते थे| बि्रटिश एडमिरल की बेटी मिस स्लेड को उन्होंने ‘मीरा बेन’ नाम दे दिया था| अमेरिकी भक्तिन निल्ला क्रेम कुक को वे ‘भ्रष्ट बेटी’ कहा करते थे| बीबी अमतुस्सलाम को वे ‘पगली बिटिया’ बोला करते थे| दक्षिण अफ्रीका के अपने 21 वर्ष के प्रवास में गांधीजी ने ब्रह्यचर्य की जो शपथ ली, उसके पीछे उद्दीपक कारण उनका जेल का एक भयंकर अनुभव भी था| नवंबर 1907 में ट्रांसवाल की जेल में उन्होंने अपनी आंखों से देखा कि एक चीनी और एक अफ्रीकी कैदी किस तरह पूरी रात वीभत्स यौन-क्रीड़ा करते रहे| उन्हें अपनी रक्षा के लिए पूरी रात जागना पड़ा| संतोनोत्पत्ति के अलावा किसी भी अन्य कारण के लिए किए गए सहवास को वे पाप मानने लगे| इस प्रतिज्ञा का पालन उन्होंने जीवन भर किया| अफ्रीकी कैदियों के दुराचरण को नजदीक से देखने के कारण ही गांधीजी ने जो टिप्पणी कर दी, उसके आधार पर उन्हें नस्लवादी कहना सर्वथा अनुचित है|
दक्षिण अफ्रीकी प्रवास के दौरान उन्होंने ब्रह्यचर्य पर काफी जोर दिया लेकिन भारत लौटकर 15-16 साल बाद गांधीजी ने ब्रह्यचर्य के कुछ ऐसे प्रयोग शुरू कर दिए, जो गांधी के पहले दुनिया में किसी ने नहीं किए| वे स्वयं पूर्ण नग्न होकर नग्न युवतियों और महिलाओं के साथ सोते थे, पूर्ण नग्नावस्था में महिलाओं से मालिश करवाते थे और रजस्वला युवतियों को मां की तरह व्यावहारिक मदद देते थे| गांधीजी के इन प्रयोगों पर राजाजी, विनोबा, कालेलकर, किशोरभाई मश्रूवाला, नरहरि पारेख और डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जैसे गांधी-भक्तों ने भी प्रश्न चिन्ह लगाए| गांधीजी के साथी प्रो. निर्मलकुमार बोस ने गांधीजी के इस आचरण पर कड़ी आपत्ति भी की| नोआखली यात्र के दौरान गांधीजी के निजी सचिव आर.पी. परसुराम इतने व्यथित हुए कि उन्होंने पंद्रह पृष्ठ का पत्र् लिखकर गांधीजी के प्रयोगों का विरोध किया और इस्तीफा दे दिया| फिर भी गांधीजी डटे रहे|
गांधीजी क्यों डटे रहे ? क्योंकि गांधीजी के मन में कोई कलुष नहीं था| वे कामशक्ति पर विजय पाने को अपनी आध्यात्मिकता का चरमोत्कर्ष समझते थे| वे चाहते थे कि वे स्वेच्छया पूर्णरूपेण नपुंसक बन जाएं, जैसा कि बाइबिल और कुरान में कहा गया है| वास्तव में वे उस हद तक पहुंच रहे थे| वे अपनी कुटिया में खिड़की-दरवाजें बंद करके कभी नहीं सोए| वे मालिश भी खुले मैदान में करवाते थे| वे अपनी परीक्षा तो रोज करते ही थे, आम लोगों को भी देखने देते थे कि वे इस परीक्षा में सफल हुए या नहीं| उनके बहुत निकट रहनेवाली लगभग दर्जन भर देसी और विदेशी महिलाओं में से किसी ने भी एक बार भी यह नहीं कहा कि गांधीजी ने कभी कोई कुचेष्टा की है| कुछ महिलाओं और युवतियों को गांधीजी ने अपने से दूर किया, क्योंकि उनमें से विकार के संकेत आने लगे थे| महिलाएं गांधीजी के संग क्यों आती थीं और उन पर क्या प्रतिकि्रया होती थी, यह एक अलग विषय है|
गांधीजी का ब्रह्यचर्य केथोलिक और हिंदू ब्रह्यचर्य से काफी अलग था| सहवास के अलावा उनके यहां दरस-परस-वचन-स्मरण आदि की छूट थी लेकिन पारंपरिक ब्रह्यचर्य के इन अपवादों में कहीं रत्ती भर भी वासना न हो, यह देखना गांधी का काम था| सरलादेवी चौधरानी के साथ चले ‘वासनामय’ प्रेम-प्रसंग को भंग करने के लिए गांधी ने जिस आध्यात्मिक साहस का परिचय दिया, वह बड़े-बड़े साधु-संतों के लिए भी ईर्ष्या का विषय हो सकता है| ऐसे गांधी पर कालेनबाख के हवाले से समलैंगिक होने का संदेह करना अपनी विकृत मानसिकता को गांधी पर आरोपित करना है|
जनसत्ता, 07अप्रैल 2011 : जोज़फ लेलीवेल्ड का भला हो कि उनकी वजह से गांधी पर एक बार फिर लंबी-चौड़ी बहस शुरू हो गई है| कृतज्ञ भारत गांधी को सिर्फ हर 2 अक्तूबर या 30 जनवरी को याद करने को मजबूर हो जाता है वरना गांधी अब अजायबघर की वस्तु हो गए हैं| लेलीवेल्ड की पुस्तक ”ग्रेट सोल : महात्मा गांधी एंड हिज़ स्ट्रगल विथ इंडिया” कोई चालू किताब नहीं है| लेलीवेल्ड ने वर्षों के अनुसंधान के बाद यह पुस्तक लिखी है| वे ‘पुलिट्रजर’ जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के विजेता हैं| वे ‘न्यूयार्क टाइम्स’ के कार्यकारी संपादक भी रह चुके हैं| उन्हें भारत और दक्षिण अफ्रीका में रहकर काम करने का भी अच्छा अनुभव है| उन्होंने अपनी पुस्तक पर लगे प्रतिबंध की कड़ी भर्त्सना की है और इस आरोप को बिल्कुल निराधार बताया है कि उन्होंने गांधी को समलैंगिक या नस्लवादी कहा है| उनका कहना है कि इस तरह के शब्द उनकी पुस्तक में कहीं आए ही नहीं हैं| लेलीवेल्ड बिल्कुल ठीक हैं| उन्हें उनके शब्दों के आधार पर कोई भी नहीं पकड़ सकता लेकिन उनकी पुस्तक की एक समीक्षा ने उन्हें विवादास्पद बना दिया| एक बि्रटिश अखबार ने इस समीक्षा को आधार बनाकर महात्मा गांधी और उनके शिष्य हरमन कालेनवाख के संबंधों को उछाल दिया| उसने लेलीवेल्ड द्वारा वर्णित तथ्यों की ऐसी वक्र-व्याख्या की कि गांधी एक बार फिर चर्चा के घेरे में आ गए| लेलीवेल्ड ने गांधी और कालेनबाख के संबंधों के बारे में जो भी लिखा है, वह प्रामाणिक दस्तावेजों के आधार पर लिखा है| संपूर्ण गांधी वाड्रमय से उन्होंने कालेनबाख के नाम गांधी के पत्रें को उद्रधृत किया है| ये हरमन कालेनबाख कौन थे ? कालेनबाख गांधी से दो साल छोटे थे| वे जर्मन-यहूदी थे| वे 1904 में गांधी से मिले| गांधी और कालेनबाख इतने घनिष्ट मित्र् बन गए कि वे एक-दूसरे को दो शरीर और एक आत्मा मानते थे| कालेनबाख ने ही अपनी 1100 एकड़ भूमि गांधीजी को दी थी, जिस पर उन्होंने ”तॉल्सतॉय फार्म” नामक आश्रम खड़ा किया था| वे गांधी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने ब्रह्यचर्य और शाकाहार का व्रत ले लिया| वे गांधीजी के सत्याग्रहों में जमकर भाग लेते, संगठनात्मक कार्य करते और आश्रम की व्यवस्था भी चलाते| ऐसे दो परम मित्रें के बीच समलैंगिक संबंधों की बात कैसे उठी ? लेलीवेल्ड ने गांधीजी के पत्रें के कुछ शब्दों को इस तरह उद्रधृत किया कि उनके दोहरे अर्थ लगाए जा सकते हैं| जैसे गांधीजी खुद को ‘अपर चेंबर’ (उच्च सदन) और कालेनबाख को ‘लोअर चेम्बर’ (निम्न सदन) लिखा करते थे| लेलीवेल्ड ने इन दो शब्दों को तो उछाला लेकिन उन्होंने और उनके समीक्षकों ने यह नहीं बताया कि वे ऐसा क्यों लिखते थे ? कालेनबाख ‘लोअर हाउस’ की तरह बजट बनाते थे और गांधीजी ‘अपर हाउस’ की तरह उसमें कतरब्योंत कर देते थे| इस आर्थिक पदावलि को यौन पदाविल में बदलनेवाले मस्तिष्क को आप क्या कहेंगे ? यह आधुनिक पश्चिमी जीवन-पद्घति का अभिशाप है| इसी तरह गांधी के पत्रें में जगह-जगह कालेनबाख के लिए लिखे गए ”स्नेह और अधिक स्नेह” जैसे शब्दों का भी गलत अर्थ लगाया गया| गांधी द्वारा अपने शयन-कक्ष में रखे गए कालेनबाख के चित्र् को भी उसी अनर्थ से जोड़ा गया| गांधी के लगभग 200 पत्रें में उन्होंने कालेनबाख से अपने पूर्व-जन्म के संबंधों की बात भी कही है| ये सब बातें किसी भी भौतिकवादी सभ्यता के ढांचे में पले-बढ़े विद्वान या पत्र्कार के लिए अजूबा ही हो सकती हैं| वे यह मानकर चलते हैं कि दो पुरूषों या दो महिलाओं के बीच परम आत्मीयता का भाव रह ही नहीं सकता| यौन संबंधों के बिना आत्मीय संबंध संभव ही नहीं हंंै| वास्तव में गांधी इतने विलक्षण और इतने अद्वितीय थे कि उन्हें न तो परंपरागत पश्चिमी चश्मों से देखा जा सकता है और न ही परंपरागत भारतीय चश्मों से ! गांधी का सही रूप देखने के लिए मानवता को अपना एक नया चश्मा बनाना पड़ेगा| गांधी ने अपनी आत्म-कथा को ”मेरे सत्य के प्रयोग’ कहा है| यदि वे कुछ वर्ष और जीवित रहते और मेरी उनसे भेंट हो जाती तो मैं उनसे कहता कि आप एक आत्म-कथा और लिखिए और उसका शीर्षक दीजिए ‘मेरे ब्रह्यचर्य के प्रयोग’ ! उनकी यह दूसरी आत्म-कथा भी मानवता की बड़ी सेवा करती| मानव-समाज को तब यह मालूम पड़ता कि दुनिया में महापुरूष तो एक से एक बढ़कर हुए लेकिन गांधी-जैसा कोई नहीं हुआ| पिछले 55 वर्षों में गांधीजी के निजी जीवन पर चार-पांच ग्रंथ आ चुके हैं| जिनमें प्रो. गिरजाकुमार का शोध सर्वश्रेष्ठ है लेकिन अभी इस रहस्यमय मुद्दे पर काफी काम होना शेष है| कामदेव से कौन पराजित नहीं हुआ ? क्या माओ, क्या लेनिन, क्या हिटलर, क्या आइंस्टीन, क्या कार्ल मार्क्स, क्या सिगमिंड फ्रायड, क्या तॉल्सतॉय, क्या लिंकन, क्या केनेडी और क्या क्लिंटन ? दुनिया के किसी भी बलशाली या धनशाली व्यक्ति का नाम लीजिए और उसके पीछे कोई न कोई रेला निकल आएगा| जिन्हें विभिन्न मज़हब और संप्रदाय अपना जनक कहते हैं और जिन्हें अवतारों और देवताओं की श्रेणी में रखा जाता है, ऐसे महापुरूष भी यौन-पिपासा के शिकार हुए बिना नहीं रहे लेकिन गांधी गजब के आदमी थे, वे 79 साल की उम्र में भी कामदेव से लड़ते रहे और उसे परास्त करते रहे| 37 साल की भरी जवानी में उन्होंने जो ब्रह्यचर्य का व्रत लिया, उसे उन्होंने अंतिम सांस तक निभाया| उन्होंने अपनी यौन-शक्ति का उदात्तीकरण किया| वे ऊर्ध्वरेता बने| जब कभी कुछ लड़खड़ाहट का अंदेशा हुआ, उन्होंने उसे छिपाया नहीं| अपने अति अंतरंग अनुभवों को भी उन्होंने अपने संपादकीय में लिख छोड़ा| वे सत्य के सिपाही थे| यदि मन में सोते या जागते हुए भी कोई कुविचार आया तो उन्होंने उसे अपने साथियों को बताया और उसके कारण और निवारण में वे निरत हुए| ज़रा याद करें कि अपनी आत्म-कथा में उन्होंने अपनी कामुकता का चित्र्ण कितनी निर्ममता से किया है| उन्होंने अंतिम सांसें गिनते हुए पिता की उपेक्षा किसलिए की ? सिर्फ काम-वासना के वशीभूत होने के कारण ! इस काम-शक्ति ने अंतिम दम तक गांधी का पीछा नहीं छोड़ा| दक्षिण अफ्रीका में सिर्फ कालेनबाख ही नहीं, हेनरी पोलक और उनकी पत्नी मिली ग्राहम तथा उनकी 16 वर्षीय सचिव सोन्या श्लेसिन के साथ गांधी के संबंध इतने घनिष्ट और आत्मीय रहे कि कोई चाहे तो उनकी कितनी ही दुराशयपूर्ण व्याख्या कर सकता है| मिस श्लेसिन को केलनबाख ही गांधीजी के पास लाए थे| गांधीजी ने लिखा है कि श्लेसिन बड़ी नटखट निकली ”लेकिन एक महिने के भीतर ही उसने मुझे वश में कर लिया|” अपने पुरूष और महिला मित्रें के साथ गांधी के संबंध इतने खुले और सुपरिभाषित होते थे कि कहीं किसी प्रकार की मर्यादा-भंग का प्रश्न ही नहीं उठता था| तॉल्सतॉय फार्म और फीनिक्स आश्रम में गांधी जैसे खुद रहते थे, वैसे ही वे अपने अनुयायियों को भी रहने की छूट देते थे| उसका नतीज़ा क्या हुआ ? दोनों स्थानों पर अपि्रय यौन-घटनाएं घटीं| गांधी को विरोधस्वरूप उपवास करना पड़ा| कुछ लोगों को निकालना पड़ा| उनके अपने बेटे को दंडित करना पड़ा| गांधी-जैसे लौह-संयम और पुष्प-सुवास की-सी उन्मुक्त्ता क्या साधारण मनुष्यों में हो सकती है ? इन दो अतियों का समागम गांधी-जैसे अद्वितीय व्यक्ति में ही हो सकता था| गांधीजी के दबाव में आकर आग्रमवासी ब्रह्यचर्य का व्रत तो ले लेते थे लेकिन वे लंबे समय तक उसका पालन नहीं कर पाते थे| स्वयं कालेनबाख इसके उदाहरण बने| गांधी के बड़े-बड़े अनुयायी वासनाग्रस्त होने से नहीं बचे लेकिन गांधी ने कभी घुटने नहीं टेके| गांधीजी के आश्रमों में रहनेवाले युवक-युवतियों को वे काफी छूट देते थे लेकिन उन पर कड़ी निगरानी भी रखते थे| जहां तक कालेनबाख का सवाल है, वे उन्हें ‘लोअर चेंबर’ कहकर जरूर संबोधित करते थे लेकिन ऐसे अड़नाम उन्होंने अपने कई अन्य पुरूष और महिला मित्रें को दे रखे थे| रवीद्रनाथ ठाकुर की भतीजी सरलादेवी चौधरानी को वे अपनी ‘आध्यात्मिक पत्नी’ कहा करते थे| बि्रटिश एडमिरल की बेटी मिस स्लेड को उन्होंने ‘मीरा बेन’ नाम दे दिया था| अमेरिकी भक्तिन निल्ला क्रेम कुक को वे ‘भ्रष्ट बेटी’ कहा करते थे| बीबी अमतुस्सलाम को वे ‘पगली बिटिया’ बोला करते थे| दक्षिण अफ्रीका के अपने 21 वर्ष के प्रवास में गांधीजी ने ब्रह्यचर्य की जो शपथ ली, उसके पीछे उद्दीपक कारण उनका जेल का एक भयंकर अनुभव भी था| नवंबर 1907 में ट्रांसवाल की जेल में उन्होंने अपनी आंखों से देखा कि एक चीनी और एक अफ्रीकी कैदी किस तरह पूरी रात वीभत्स यौन-क्रीड़ा करते रहे| उन्हें अपनी रक्षा के लिए पूरी रात जागना पड़ा| संतोनोत्पत्ति के अलावा किसी भी अन्य कारण के लिए किए गए सहवास को वे पाप मानने लगे| इस प्रतिज्ञा का पालन उन्होंने जीवन भर किया| अफ्रीकी कैदियों के दुराचरण को नजदीक से देखने के कारण ही गांधीजी ने जो टिप्पणी कर दी, उसके आधार पर उन्हें नस्लवादी कहना सर्वथा अनुचित है| दक्षिण अफ्रीकी प्रवास के दौरान उन्होंने ब्रह्यचर्य पर काफी जोर दिया लेकिन भारत लौटकर 15-16 साल बाद गांधीजी ने ब्रह्यचर्य के कुछ ऐसे प्रयोग शुरू कर दिए, जो गांधी के पहले दुनिया में किसी ने नहीं किए| वे स्वयं पूर्ण नग्न होकर नग्न युवतियों और महिलाओं के साथ सोते थे, पूर्ण नग्नावस्था में महिलाओं से मालिश करवाते थे और रजस्वला युवतियों को मां की तरह व्यावहारिक मदद देते थे| गांधीजी के इन प्रयोगों पर राजाजी, विनोबा, कालेलकर, किशोरभाई मश्रूवाला, नरहरि पारेख और डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जैसे गांधी-भक्तों ने भी प्रश्न चिन्ह लगाए| गांधीजी के साथी प्रो. निर्मलकुमार बोस ने गांधीजी के इस आचरण पर कड़ी आपत्ति भी की| नोआखली यात्र के दौरान गांधीजी के निजी सचिव आर.पी. परसुराम इतने व्यथित हुए कि उन्होंने पंद्रह पृष्ठ का पत्र् लिखकर गांधीजी के प्रयोगों का विरोध किया और इस्तीफा दे दिया| फिर भी गांधीजी डटे रहे| गांधीजी क्यों डटे रहे ? क्योंकि गांधीजी के मन में कोई कलुष नहीं था| वे कामशक्ति पर विजय पाने को अपनी आध्यात्मिकता का चरमोत्कर्ष समझते थे| वे चाहते थे कि वे स्वेच्छया पूर्णरूपेण नपुंसक बन जाएं, जैसा कि बाइबिल और कुरान में कहा गया है| वास्तव में वे उस हद तक पहुंच रहे थे| वे अपनी कुटिया में खिड़की-दरवाजें बंद करके कभी नहीं सोए| वे मालिश भी खुले मैदान में करवाते थे| वे अपनी परीक्षा तो रोज करते ही थे, आम लोगों को भी देखने देते थे कि वे इस परीक्षा में सफल हुए या नहीं| उनके बहुत निकट रहनेवाली लगभग दर्जन भर देसी और विदेशी महिलाओं में से किसी ने भी एक बार भी यह नहीं कहा कि गांधीजी ने कभी कोई कुचेष्टा की है| कुछ महिलाओं और युवतियों को गांधीजी ने अपने से दूर किया, क्योंकि उनमें से विकार के संकेत आने लगे थे| महिलाएं गांधीजी के संग क्यों आती थीं और उन पर क्या प्रतिकि्रया होती थी, यह एक अलग विषय है| गांधीजी का ब्रह्यचर्य केथोलिक और हिंदू ब्रह्यचर्य से काफी अलग था| सहवास के अलावा उनके यहां दरस-परस-वचन-स्मरण आदि की छूट थी लेकिन पारंपरिक ब्रह्यचर्य के इन अपवादों में कहीं रत्ती भर भी वासना न हो, यह देखना गांधी का काम था| सरलादेवी चौधरानी के साथ चले ‘वासनामय’ प्रेम-प्रसंग को भंग करने के लिए गांधी ने जिस आध्यात्मिक साहस का परिचय दिया, वह बड़े-बड़े साधु-संतों के लिए भी ईर्ष्या का विषय हो सकता है| ऐसे गांधी पर कालेनबाख के हवाले से समलैंगिक होने का संदेह करना अपनी विकृत मानसिकता को गांधी पर आरोपित करना है|

Sunday, April 17, 2011

SEONI ME SUNAMI

SEONI ME SUNAMI

आंधी, पानी ने बरपाया कहर, बिजली गुल 
छप्पर उड़े, दीवार और पेड़ जमींदोज
दस दिनों से प्रकोप जारी , शनिवार को तूफानी हवाओं ने पूरे शहर को झकझोरा अलग-अलग घटनाओं में छह घायल
ANCER नगर के हडडी गोदाम क्षेत्र में आंधी तूफान के चलते आटो चालक मो जैेद के मकान से सटे पक्के मकान की छत की रैलिंग गिर गयी, जिससे घर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। इस घर में मौजूद चार बच्चियों सहित मां बुरी तरह घायल हो गयी। घटना के बाद पड़ोसियों ने मलबा हटाते हुए रईसा (५), नाजिया (१६), कुलसुम (१२), साजिया (१०) और मां रूकैया बी (४०) को बाहर निकाला। पांचो घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनका उपचार जारी है। इसके अलावा एक अन्य घटना में बींझावाड़ा स्थित बालाजी नगर में भवन निर्माण में मजदूरी कर रही बदनिया बाई (४०) पर निर्माणाधीन बीम आ गिरी जिससे वह बुरी तरह चोटिल हो गई है जिसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।सिवनी। एक सप्ताह से दोपहर बाद मौसम बिगड़ने और ओले, आंधी के साथ तेज बारिश होने का सिलसिला शनिवार को भी जारी रहा। 
दोपहर डेढ़ बजे से शुरू हुई धुंआधार बारिश से शहरवासियों पर कहर बरपा दिया। पौन घंटे की तेज हवा के साथ हुई इस बारिश से घरों के छप्पर उड़ गए वहीं दीवार, पेड़ भी धराशायी हो गए हैं।
VO
अचानक तेज हवा के साथ धुंआधार बारिश से शहर के चार लॉन धराशायी हो गए। लॉन का पूरा पंडाल तेज हवा की चपेट में आने से गिर गए। पंडाल गिरने से कोई हताहत नहीं हुआ है। 
तेज हवा, धुंध से राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे लगे पेड़ भी धराशायी हो गए। जबलपुर रोड में एलआईसी के समीप और दूरसंचार भवन के समीप कुछ पेड़ जड़ सहित उखड़ जाने के बाद बिजली के तारों पर अटके पड़े रहे। यहीं बने शासकीय मकान में पेड़ गिरने से वे क्षतिग्रस्त हो गए हैं। शहर में जगह-जगह लगे छोटे-बड़े होर्डिंग्स भी तेज हवा पानी का शिकार होकर जमीन पर गिर गए थे।घरों से छप्पर गायबआंधी बारिश के कहर से छप्पर भी नहीं बच सके। कच्चे घरों के छप्पर उड़कर दूर जा गिरे थे। वहीं बरघाट रोड पर राजपूत कॉलोनी निवासी बसोड़ीलाल अहरवाल के पक्के मकान की छत से ८-१० सीमेंट की सीट उड़ गयी। इस ग्राम दिवारी में भी अनेक पेड़ जड़ सहित उड़कर ३० फीट दूर सड़क पर जा गिरा। इससे घर में रखा अनाज और सामान खराब हो गया। यहां के बस स्टैंड में बनी अस्थायी झोपड़ी भी तेज हवा में धराशायी हो गयी। अनेक कच्चे घरों के खपड़ेल भी उड़ कर टूट गए।
बुधवारी में जलप्लावनधुंआधार बारिश से शहर के बुधवारी बाजार, शंकर मढ़िया, बस स्टैंड आदि क्षेत्र में जलप्लावन की स्थिति निर्मित हो गयी थी। बुधवारी बाजार और शंकर मढ़िया में घुटनों-घुटनों पानी भर गया था। यहां की अनेक दुकानों में भी पानी भरने से दुकान में रखा सामान खराब हो गया।सब्जी को नुकसानतेज आंधी बारिश और ओले गिरने का सबसे अधिक प्रभाव सब्जी की फसल पर पड़ रहा है। क्षेत्रीय किसानों ने बताया है कि टमाटर, भाजी सहित अन्य सब्जियों की फसल ओले और तेज बारिश के कारण बर्बाद हो गयी है। सब्जियों के साथ-साथ किसानों के खेतों में रखी कटी फसल और गेहूं खरीदी केन्द्रों में खुले में रखी सैकड़ों क्विंटल गेहूं पानी में भींग गयी है।शहर के इर्दगिर्द गोपालगंज, बंडोल, कोहका, अरी, दिवारी सहित कई स्थानों में झाड़ों के गिरने, खपड़े के उड़ने और आंधी तूफान, बारिश से गरीब बस्तियों में नुकसानी के समाचार मिले हैं। नगर में जगह -जगह लगे प्लॉस्टिक के होर्डिंग्स टूटकर बिखर गए हैं। ऐसे कई होर्डिंग नगरपालिका की मंजूरी के बिना लगे
ABDUL QUABIZ KHAN

FANNY







Saturday, April 16, 2011

भ्रष्टाचार से मुक्ति तभी मिलेगी जब हम चाहेंगे!


भ्रष्टाचार व्‍यक्ति की चारित्रिक दुर्बलता है और उसके नैतिक मूल्य को डिगा देती है| इसकी व्‍यापकता इतनी है कि यह हर जगह व्‍याप्‍त है। यह कह लीजिए वर्तमान समय में कोई इससे अछूता नहीं हैं| अब तो इसने असाध्य और महारोग का रूप धारण कर लिया है| आज यह समस्‍या विश्‍व की है और विकृत मस्तिष्क की उपज है| सही अर्थों में जब समाज की ईकाई भ्रष्ट हो जाती है तो समाज भ्रष्‍ट हो जाता है, ऐसे में समाज के समस्‍त मानदंड प्रभावित होते है| ईमानदारी और सत्‍यता के बजाए स्वार्थ और भ्रष्टता फैलती है|
आचार्य कौटिल्य ने अपने ग्रन्‍थ 'अर्थशास्त्र' में भ्रष्टाचार के संबंध में कहा है-'अपि शक्य गतिर्ज्ञातुं पततां खे पतत्त्रिणाम्| न तु प्रच्छन्नं भवानां युक्तानां चरतां गति| अर्थात् आकाश में रहने वाले पक्षियों की गतिविधि का पता लगाया जा सकता है, किंतु राजकीय धन का अपहरण करने वाले कर्मचारियों की गतिविधि से पार पाना कठिन है| उनके अनुसार भ्रष्टाचार के आठ प्रकार हैं-प्रतिबंध, प्रयोग, व्यवहार, अवस्तार, परिहायण, उपभोग, परिवर्तन एवं अपहार|
भोगवाद ने अहंकारी और लालची बनाया तभी प्रत्‍येक अपनी आय से अधिक प्राप्ति की प्रबल कमाना करता है और मर्यादा की समस्‍त सीमाएँ लाँघ लेना चाहता है और जैसे ही ऐसा प्रयास सफल होता है, भ्रष्टाचार का राक्षस हमी को निगलने का तैयार रहता है।
भ्रष्टाचार रिश्वत, लूट-खसोट और भाई-भतीजावाद की देन है और एक से अधिक व्यक्तियों के बीच होता है जिससे इसकी एक ऋंखला बनती जाती है एवं ये व्‍यापक हो जाता है| यदि इसे एक व्यक्ति करे तो उसे धोखेबाज कहते हैं और एक से अधिक व्‍यक्ति करे तो भ्रष्टाचार कहलाता है| यह गोपनीय कार्य है और एक समूह आपसी मंत्रणा कर अपने निहित स्वार्थ हेतु यह कदम उठाता है| इसमें नियम और कानून का खुला उल्लंघन नहीं किया जाता है, अपितु योजनाबद्ध तरीके से जालसाजी की जाती है |
भ्रष्टाचार से मुक्ति हेतु केवल कानून बनाना ही एकमात्र विकल्प नहीं है, इसमें प्रत्‍येक व्‍यक्ति की और पूरे समाज की एकजुटता चाहिए, वे प्रतिज्ञा करें कि भ्रष्‍टाचार की मुक्ति के लिए न रिश्‍वत देंगे और न लेंगे। क्‍या व्यक्ति, यहां तक पूरे समाज में चारित्रिक सुदृढ़ता, ईमानदारी और साहस का होना अनिवार्य है| भ्रष्टाचार रूपी दैत्य से जूझने के लिए बाह्य और अन्‍त: दोनों से सुदृढ़ता चाहिए। हमें जागरूक होना होगा और दूसरों में भी ऐसी ही जागरुकता लानी होगी कि व्यक्ति भोग के लिए लोभ, मोह को छोड़कर आत्‍मबल सहित जीवनयापन को सदाचार संग जिए।
समाज को एक अन्‍नाहजारे की जरुरत नहीं है, सभी को अन्‍नाहजारे बनना होगा और सदाचार संग जीवन जीने के साथ-साथ अगली पीढ़ी को भी ऐसा ही जीवन जीने की प्रेरणा देनी होगी तभी हम इस महारोग से मुक्ति पा सकेंगे।

…लोकपाल बिल एवं जनलोकपाल बिल में अंतर !


हमारी राय में यहाँ सरकारी लोकपाल और जन लोकपाल में अंतर स्पष्ट करना आवश्यक है ताकि इसे बेहतर तरीके से समझा जा सके और यह जाना जा सके की दोनों में से जन लोकपाल श्रेष्ठ क्यों है
1. राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति:
सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी.
वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.
सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.
सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी.
2. अधिकार क्षेत्र सीमित:
अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है. लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है. सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे.
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा. चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी. बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा.
3. चयनकर्ताओं में अंतर:
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे.
लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है. प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए.
सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है. भ्रष्ट अफ़सरों को लोकपाल बर्ख़ास्त कर सकेगा.
4. सज़ा और नुक़सान की भरपाई:
सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है. साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है.
ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है. इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है.
धन्यवाद !

Friday, April 15, 2011

सचिव और सरपंचों की चरणबद्ध हड़ताल प्रारंभ


 सचिव और सरपंचों की चरणबद्ध हड़ताल प्रारंभ 
 

ANCER
मप्र पंचायत सचिव एवं सरपंच संगठन के आह्वान पर पंचायत सचिवों एवं सरपंचों द्वारा मनरेगा के अंतर्गत अप्रैल से चरणबद्ध हड़ताल प्रारंभ कर दी गई है। उक्त निर्णय केंद्र व राज्य शासन द्वारा पंचायत सचिवों एवं सरपंचों के साथ सौतेला व्यवहार करने एवं कार्य अनुसार सशक्त नहीं करने संबंधी आदि मांगों को लेकर धरना प्रारंभ किया गया है। 4 से 8 अप्रैल तक जनपद मुख्यालयों पर धरना कार्यक्रम व 9 से 15 अप्रैल जिला स्तर पर धरना एवं ज्ञापन तथा 16 से 25 अप्रैल तक दिल्ली में चार राज्यो के सरपंच सचिवों द्वारा जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया जाएगा।

VO
सरपंच सचिवों की पांच सूत्रीय मांगों के संबंध में जिला अध्यक्ष राजेन्द्र यादव  द्वारा बताया गया कि केंद्र शासन द्वारा मनरेगा योजना के अंतर्गत कार्य कर रहे प्रत्येक कर्मचारी को सेवा भत्ता दिया जा रहा है। फिर सरपंच, सचिवों को क्यों नहीं दिया जा रहा है। समय के साथ ग्राम पंचायतों की शक्ति बढाते हुए 5 लाख के निर्माण कार्यो की जगह 15 लाख तक की शक्ति प्रदाय की जाए। मनरेगा के अतंर्गत कम से कम 5-5 हजार सेवा भत्ता प्रतिमाह सरपंच सचिवों को प्रदाय किया जाए। मनरेगा के अंतर्गत 100 कार्य दिवस में संशोधन करते हुए मजदूर की इच्छा अनुसार कार्य प्रदाय करने संबंधी आदेश जारी किया जाए। सरपंचों को मानदेय में बढ़ोत्तरी की जाए। पंचायत  संगठन के  पुष्पराज दुबे सरपंच संघ  अध्यक्ष सिवनी
 ने बताया कि उक्त मांगों को लेकर प्रदेश स्तरीय एवं केंद्र स्तरीय लड़ाई पंचायत सचिवों एवं सरपंचों द्वारा प्रारंभ कर दी गई है। जो मांग पूर्ण नहीं होने तक अनवरत जारी रहेगी।  प्रान्तव्यापी आन्दोलन के तहत् सचिव और सरपंचों ने ग्राम सभाओं का बहिष्कार किया। सरपंच और सचिवों की हडताल से ग्राम पंचायतों के काम प्रभावित हुए है। 
VO 1
बाबा साहव भीमराव अंबेडकर जयंति पर विशेष ग्राम सभा का आयोजन होना था परन्तु मध्य प्रदेश सचिव संगठन के आह्वान पर सात सूत्रीय मांगों के समर्थन में अनिश्चित कालीन हड़ताल जारी रही और ग्रामों में ग्राम सभाएं नहीं हो सकी। जवकि सचिवों द्वारा नौडल अधिकारियों को ग्राम सभाओं से संबंधित कागज दे दिए गए थे फिर भी पंचायतों के काम प्रवाहित हुए जिसके कारण ग्रामीणों को परेशानियां हो रही है। 
सचिवों ने बताया कि संगठन द्वारा अपनी विभिन्न मांगो के निराकरण के लिए आगामी 24 अप्रैल को दिल्ली में विरोध स्वरूप प्रदर्शन का निर्णय लिया गया है। प्रदर्शन का उद्वेश्य सरपंच और सचिवों की मांगें पूरी कराना है।
उन्होंने वताया कि जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जाती तब तक हड़ताल जारी रहेगी। सचिव और सरपंच अपनी मांगों पर अड़े हुए है। 
ज्ञात हो कि प्रदेश संगठन के आह्वान पर सचिव एवं सरपंचों द्वारा तहसील और जिला स्तर पर प्रदर्शन कर सात सूत्रीय मांगों का ज्ञापन वरिष्ट अधिकारियों को दिया गया था।

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MEY HO NA


MUJHE KUCH KEHNA HEY

मेने महात्मा गाँधी को तो नहीं देखा पर इतना जनता हूँ की उन्होंने हमें आज़ादी दिलाई हे हमारा देश आज फिर भ्रस्ताचार का गुलाम हो गया हे जिसे एक बार फिर आज़ाद कराना होगा जिसके लिए अन्ना बापू के रूप में हमरे बीच में प्रयास कर हमने टीवी पर देखा हे जिसका हमे समर्थन देना चहिए इसीके लिए हम अनशन पर बेठना चहते हे ये कहेना हे सिवनी के मासूम बच्चे अंकित अग्रवाल ओउर उनके साथी दोस्तों का जिन्हें अभी से भ्रस्ताचार की समझ आगई हे जिसकी उम्र सिर्फ ८ साल हे वेह अपने दोस्तों के साथ अन्ना हजारी की मुहीम में शामिल होना चहते हे जिससे यह अनुमान लगया जासकता हे की भ्रष्टाचार रुपी देत ने हमारे समाज व देश को किस कदर जकड़ लिया हे जिसे आजाद कराने के लिए फिर से इस देश में महात्मा गाँधी जेसे महापुरूष की ज़रुरत हे बाईट ;-अनमोल खेमुका

MEY HO NA

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SEONI ME BARFBARI

सिवनी  में हुई अचानक बर्फ़बारी से किसानो के होसले एक बार फिर पस्त होते दिखे एक तरफ तो सिवनी चेत्र के किसान पाले के सदमे से बहार भी नहीं आ पाय की मुव्ज़े के लालीपाप जो शासन ने दिया था को पाने के लिए राजस्व अधिकारियो के चक्कर काट ते रहे बची कुची फसल को अभी बेच ने की तय्यारी ही की थी तो मूसलाधार   बारिश के साथ बर्फ़बारी से एक बार फिर किसानो की चिंता में बढोतरी हो गई हे 

seoni me barfbari

seoni me barfbari

आम आदमी को लड़नी होगी भ्रष्टाचार से सीधी लड़ाई


पिछली ५ अप्रैल से जो दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुआ ,ऐसा लगता है की वो किसी मंत्र का प्रभाव सा ही है |हवा के छोटे से एक थपेड़े ने यकायक एक बड़े तूफ़ान का रूप ले लिया|ऐसा लिखकर में उन तमाम आंदोलनकारियों के सम्मान में कोई कमी नहीं कर रहा |वे सब और उनकी पूरी टीम बधाई की पात्र है जिनके कारण आजादी के बाद संभवतः पहली बार ऐसा लगा की इस जनतंत्र में जन अभी जीवित है |
देश भर में यह चर्चा का विषय है कि कैसे सरकार की आंख के सामने देखते –देखते एक चिंगारी ने शोले का रूप धर लिया और इसके पहले कि लोकतान्त्रिक भारत कि सत्ता वयवस्था इस की चपेट में आती सरकार ने समझदारी का परिचय देते हुए सब को सयंमित कर लिया | इस बहाव को कशमीर से कन्याकुमारी तक फेलाने का काम देश के मीडिया ने किया विशेष रूप से इलेक्ट्रोनिक मीडिया जिसने एक धारावाहिक के सामान इस का प्रसारण किया |
लोगो के इस अनशन से जुडने का सबसे बड़ा कारण यह था कि देश के हर आम आदमी को ऐसा लग रहा था कि यह तो उसकी ही आवाज है जो कई बरसो से दबाई जा रही थी|उसने यह स्पष्ट महसूस किया कि किसी ने उसके मन की बात को उठाकर राष्ट्रीय परिदृश्य पर रख दिया है|जब भ्रष्टाचार के बोझ से दबे आम आदमी को अपना वजन हलके होते दिखा तो वह भी अपने -अपने शहरों में इस कारवां के साथ लिया | जो निशचय ही अन्दोलान्कर्ताओं के लिये एक मजबूत मंच साबित हुआ |
इस पूरे घटना क्रम से देश में एक बार पुन राजनेताओं कि सही स्तिथि दिखी है| जब तमाम राजनेताओं को उस मंच से खदेड दिया गया| जनप्रतिनिधि निर्वाचित होना और सही मायनों में जनता का प्रतिनिधित्व करना दोनों में जमींन असमान का फर्क है |ऐसा लगा कि साठ वर्ष से अधिक का लोकतान्त्रिक ढांचा इस झटके से लड़खड़ा गया हो |आम जनता और सरकारों के बीच की खाई और गहरी हो गयी है |
भ्रष्टचार ,घोटालों ,आतंक ,बेरोजागरी ,हिंसा ,भुखमरी ,भाई –भतीजावाद से लड़ाई और रोटी पानी जैसी बुनियादी चीजों के लिए आज भी इस देश का आम आदमी संघर्षरत है |विकास के आंकड़ों की बड़ी –बड़ी तस्वीरें ,आम आदमी की इन भारी चुनौतियों के सामने बोनी और धुंधली नजर आती है |
अब सवाल यह कि इसे से आगे क्या ?क्योकि भ्रष्टाचार का भूत इतनी आसानी से उतरने वाला नही है |इस अर्थ यह भी नहीं है कि नाउम्मीद होकर हार मान ली जाये |प्रयास तो करने ही होंगे |जरूरी है उन कारणों की पड़ताल जो भ्रष्टाचार का आधार बन चुके है | इस पर प्रहार शीर्ष से ही करना होंगा और रावन के सामान बहुशीष वाले इस दानव के लिए हम सब को राम बनान होगा ,आचरण से नहीं तो कर्म से इस दिशा में शुरुआत की जा सकती है |
आजादी के बाद धीरे –धीरे राजतन्त्र समाप्त तो हुआ पर फिर इस लोकतंत्र ने नए राजा पैदा कर दिया जो कही नेता तो कही अफसरों के रूप में हमारे सामने है |ये दोनों दावा तो जनता के सेवक होने का करते है पर जनता से व्यवहार गुलामों सा करते है |हमें अपने हर छोटे –बड़े काम के लिए इनके सामने गिडगिडाना पड़ाता है या फिर रिश्वत देकर काम होता है |
हमसे वसूले गए टैक्स के पैसे से इन्हें आलिशान बंगले ,भारी वेतन-भत्ते ,बत्ती लगी बड़ी गाडिया ,घर के फर्नीचर से लेकर रेल और विमान के मुफ्त टिकट मिल रहें है|आम जनता की कमाई से ये सब जीते जी स्वर्ग में और आम आदमी नर्क सी जिंदगी जी रहा है अर्थात इतने सब के बाद भी यदि आम –आदमी कि जिंदगी में चैन होता तो वो तसल्ली कर लेता लेकिन आज ऐसा कुछ भी नहीं है | सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्यों जनता गरीब और नेता अमीर होते जा रहें है | ऐसा कौन सा चिराग है जो सिर्फ नेताओं के पास है जो उन्हें दिन दुनी रात चौगनी तरक्की दे रहा है और कोई अपराधी भी साबित नहीं हो रहा है |
यह एक कड़वा सच है कि आज हर आम और खास बुरी तरह से भ्रष्टाचार के दल दल में फंसा है और जितने हाथ –पांव निकलने के लिए मर रहा है उतना ही गहरा फंसता जा रहा है|अगर ऐसा कहा जाये की भ्रष्टाचार हमारे खून में मिल गया है तो गलत नहीं होगा |एक भ्रष्टाचार ही ऐसी चीज है जिसने देश में जांत-पांत और मजहब की दीवारों को तोड़ कर सब को अपने रंग में रंग लिया है |अब स्थितियां इतनी विषम हो चली है कि हमारी आत्मा भी हमें भ्रष्ट होने पर धिक्कारती नहीं है ,अपितु दिलासा देती है की हम क्या करें दुनिया ही ऎसी है |
जरुरत इस सोच को बदलने की है ,कही ना कही से तो शुरुआत करनी होगी रास्ता मुश्किल जरूर है पर असंभव नहीं |क्योकि अन्दोलन का माहौल खत्म हुआ और हम फिर से अपने रंग में रंग जायेंगे |अब तो भ्रष्टाचार तभी मिटेगा जब हम स्वयं के स्तर पर इस से संघर्ष करेंग

हमें अपने मन में रौशनी करनी होगी बाहर मोमबत्ती जलने भर से माहौल तो बनेगा लेकिन कुछ बदलेगा नहीं |व्यक्तिगत स्तर पर इसे लड़ने और इसे छोड़ने के मजबूत संकल्प लेने होंगे,नहीं तो इस भ्रष्ट तिसिल्म को तोडना कठिन होगा |चाहे कितने भी अनशन और अन्दोलन हो सब तूफ़ान के क्षणिक उन्माद के जैसे शोर करेंगे और शांत हो जायेंगे |आइये अपने आप से आज ही इसकी शुरुआत करें |

Wednesday, April 13, 2011

shikcha chintan


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shikcha chintan



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CRICKET EMOTION


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अब्दुल काबिज़ खान सिवनी